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राजनांदगाँव.
नगरीय निकाय चुनाव के समय काँग्रेस ने अपने कार्यकर्त्ताओं में जोश भरने तुरूप का इक्का चल दिया है. उसने शहर काँग्रेस में कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में पूर्व निगम अध्यक्ष रमेश डाकलिया की नियुक्ति की है.
ज्ञात हो कि, शहर काँग्रेस अध्यक्ष कुलबीर सिंह छाबडा़ स्वयं चुनाव लड़ रहे हैं. कुलबीर को मीडियाकर्मी (नेशन अलर्ट नहीं) महापौर पद का प्रबल दावेदार बता रहे थे लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.
थक हारकर कुलबीर छाबडा़ एक बार फिर पार्षद का चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन वह यदि पुन: जीत जाते हैं तो लगातार जीतने का रिकार्ड जरूर बना सकते हैं.
निखिल युवा चेहरे, पहला चुनाव लड़ रहे . . .
दरअसल, महापौर पद के लिए काँग्रेस ने युवा चेहरे निखिल द्विवेदी को मैदान में उतारा है. निखिल की सँगठन में अच्छी पकड़ होगी, लेकिन चुनावी राजनीति में वह नए हैं.
दूसरी ओर उनका मुकाबला भाजपा के मधुसूदन यादव के साथ है. मधु को राजनीति के साम दाम दँड भेद सब आते हैं.
वह पूर्व पार्षद से लेकर निगम अध्यक्ष, महापौर तो रहे ही हैं बल्कि देश की सबसे बडी़ सँसद (लोकसभा) के भी सदस्य रह चुके हैं. उनका राजनीतिक जीवन बडा़ दमदार रहा है.
ऐसे में शहर काँग्रेस के कार्यकर्त्ताओं में निराशा देखी जा रही थी. हालाँकि यदि अध्यक्ष चुनाव लड़ रहा हो तो कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करना सामान्य प्रक्रिया है लेकिन सामान्य में भी यदि विशेष हो रहा हो तो वह असामान्य ही है.
और यह विशेष रमेश डाकलिया के रूप में सामने आया है. काँग्रेस ने शहर में डाकलिया को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर कैसे तुरूप का इक्का चला है यह आगे आपको बताते हैं.
डाकलिया, मधु एक साथ अपने अपने दल से पार्षद बने थे. 1995 के आसपास शुरु हुआ सफर निगम के अँदर और बाहर कई धूप छाँव देख चुका है.
डाकलिया और उनकी टीम की महती भूमिका निगम की राजनीति में भाजपा को तोड़ने में रही थी. तब अजीत जैन भाजपा से बागी होकर महापौर बने थे.
फिर बाद में डाकलिया ने निगम में उप महापौर की कुर्सी सँभाली थी. इसके बाद जब निगम में सभापति का क्रम शुरु हुआ तो रमेश डाकलिया नाँदगाँव के प्रथम सभापति बने थे.
इसके बाद जब रमेश के भाई नरेश डाकलिया को काँग्रेस ने महापौर उम्मीदवार बनाया तो रमेश डाकलिया ने ऐसा चुनाव सँचालन किया कि मुख्यमंत्री के चुनावी क्षेत्र में भाजपा को हार झेलनी पडी थी.
वह चुनाव और उसका नतीजा, राजनीति की खबर रखने वाले हर किसी की जुबान पर आज भी सुनाई दे जाता है. दरअसल, अब तक ग्रामीण क्षेत्र की राजनीति करते रहे पुराने काँग्रेसी और अब भाजपाई अशोक चौधरी को हराने में काँग्रेस और नरेश से ज्यादा रमेश ने दिल और दिमाग लगाया था.
अब जबकि काँग्रेस ने रमेश डाकलिया को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है तो इसे दमदारी के साथ देखा जा रहा है. मधुसूदन यादव के साम दाम दँड भेद की काट उन्हीं के पास हो सकती है.
अब देखना यह है कि वह कौन सा तीर कब और किस पर चलाते हैं कि भाजपा की एक बार फिर यहाँ से हार हो जाए. लेकिन क्या वाकई ऐसा कुछ हो पाएगा ? क्या निखिल, कार्यकारी अध्यक्ष डाकलिया के लिए नरेश डाकलिया साबित हो पाएँगे ?