दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को तीनों कृषि बिल को वापस लेने की घोषणा कर दी है। बीजेपी सरकार ने लिए यह नया नहीं है। 7 साल पहले भी सरकार भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को लेकर बैकफुट पर आ चुकी है। वर्ष 2014 में सत्ता में आने के कुछ ही दिनों बाद केंद्र सरकार ने नया भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पेश किया था, लेकिन इस अध्यादेश के सामने आते ही बवाल मच गया था। मोदी सरकार ने इसे लेकर चार बार अध्यादेश जारी किए लेकिन वो इससे संबंधित बिल संसद में पास नहीं करा सकी। आखिरकार केंद्र सरकार ने 31 अगस्त 2015 को इस कानून को वापस लेने की घोषणा कर दी थी। दरअसल भूमि अधिग्रहण को लेकर यूपीए सरकार के कार्यकाल में एक कानून आया था। इस कानून में बदलाव करते हुए मोदी सरकार 2014 में नया कानून लेकर आई थी। नये कानून में बहुफसली भूमि (सेक्शन 10A) के अधीन पांच उद्देश्यों राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा, ग्रामीण आधारभूत संरचना, औद्योगिक कॉरिडोर और पीपीपी समेत सार्वजनिक आधारभूत संरचनाओं के लिए बिना सहमति के भूमि अधिग्रहण करने का प्रस्ताव था। पहले के कानून में पहले जो संशोधन हुआ था, उसके तहत सरकार और निजी कंपनियों के साझा प्रोजेक्ट में 80 प्रतिशत जमीन मालिकों की सहमति चाहिए होती थी। परियोजना सरकारी हो तो ये सहमति घटकर 70% रह जाती थी। लेकिन नए कानून में ये बाध्यता नहीं रही। सरकार के लिए भूमि का अधिग्रहण आसान हो सकता था। लेकिन अध्यादेश के इन प्रावधानों को लेकर उस भी हंगामा मच गया था। इन प्रावधानों का तीखा विरोध हुआ जिसका असर यह हुआ कि मोदी सरकार को उस वक्त कदम पीछे खींचने पड़े थे।