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जंगल की इनसाइक्लोपीडिया के जज्बे को सलाम : 6 दशकों से कर रही पर्यावरण संरक्षक के तौर पर मानव स्वास्थ्य के लिए अनोखा काम

टीआरपी डेस्क। तुलसी गौड़ा कर्नाटक राज्य के अंकोला तालुक के होनाली गांव में रहने वाली एक पर्यावरण संरक्षक हैं। जो “इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ फ़ॉरेस्ट” के नाम से भी जानी जाती है।

न तो कभी स्कूल गई न ही कभी औपचारिक शिक्षा ली बावजूद इसके लोगों को स्वस्थ रखने के लिए अपने तरिके का इस्तमाल कर रही है। जिससे वो आज दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गई है। वो पिछले 6 दशकों से पर्यावरण संरक्षण के काम में जुटी हुई हैं।

संघर्ष से भरा रहा तुलसी गौड़ा का जीवन

पेड़-पौधों और जड़ी-बूटियों का ज्ञान रखने वाली तुलसी गौड़ा मात्र 2 वर्ष की थीं तभी उनके पिता चल बसे। परिवार की गरीबी को देखते हुए उनकी मां नर्सरी में मजदूरी करने लगी और छोटी सी उम्र में ही तुलसी गौड़ा अपनी मां के साथ नर्सरी में काम किया करती थी। वहीं से उनके अंदर पर्यावरण के लिए काम करने का जज्बा आ गया। उनहोंने 20 साल की उम्र में ही पेड़-पौधों को अपनी ज़िंदगी में शामिल कर लिया।

वह पिछले 6 दशकों से वो पर्यावरण के संरक्षण का काम कर रही हैं। उन्होंने अब तक 30 हजार से ज्यादा पौधे लगाए हैं। अभी भी वो वन विभाग की नर्सरी की देखभाल करती हैं और अगली पीढ़ी को भी यही संस्कार देना चाहती हैं। उनके इसी काम को देखते हुए उनके काम को भारत सरकार और विभिन्न संगठनों द्वारा सम्मानित किया गया है।

भारत सरकार ने उन्हें उनके काम के लिए लगातर दोबार पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया है। इस बार राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में पद्मश्री सम्मान दिए गए। इस हॉल में जैसे ही तुलसी गौड़ा का नाम गूंजा, हर किसी की नज़र उनपर टिक गईं। तुलसी गौड़ा को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री अवार्ड से नवाज़ा। तुलसी गौड़ा जब दरबार हॉल में दाखिल हुईं तो उनकी सादगी ने सबका मन मोह लिया। वह बिना चप्पल के यानि नंगे पैर पद्मश्री सम्मान लेने आईं।

तुलसी गौड़ा को कई अवॉर्ड किया जा जुका सम्मानित

वहीं साल 2020 में भी तुलसी गौड़ा को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पद्मश्री से पहले उन्हें ‘इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र अवॉर्ड, ‘राज्योत्सव अवॉर्ड’ और ‘कविता मेमोरियल’ जैसे कई अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

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