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परिवर्तिनी एकादशी व्रत : भगवान विष्णु की पूजा से समस्त पापों का होता है नाश, जानिए क्या है व्रत का महत्व, मुहूर्त और कथा …

रायपुर. भाद्रपद मास के शुक्‍ल पक्ष की जो एकादशी होती है उसे परिवर्तनी एकादशी कहा जाता है. पौराणिक मान्‍यता यह है कि इस दिन भगवान विष्‍णु जो कि चतुर्मास की योगनिद्रा में सोए हुए होते हैं, इस दिन करवट लेते हैं. यही वजह है कि इसे परिवर्तनी एकादशी भी कहा जाता है. इस दिन लोग व्रत करते हैं और विष्‍णुजी के वामन स्‍वरूप की पूजा करते हैं. माना जाता है कि चतुर्मास में भगवान विष्‍णु वामन रूप में ही पाताल में निवास करते हैं.

परिवर्तिनी एकादशी व्रत का महत्व

परिवर्तिनी एकादशी व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है और वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होता है. इस दिन वामन अवतार की पूजा करने से मृत्यु के पश्चात व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

परिवर्तिनी एकादशी व्रत मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 06 सितंबर मंगलवार को प्रात: 05 बजकर 54 मिनट पर प्रारंभ हो रही है और इस तिथि का समापन अगले दिन 07 ​सितंबर बुधवार को सुबह 03 बजकर 04 मिनट पर होगा. इस साल रिवर्तिनी एकादशी व्रत 06 सितंबर को रखा जाएगा.

परिवर्तिनी एकादशी का व्रत और पूजन, इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है-

●  व्रत वाले दिन प्रात:काल उठकर भगवान का ध्यान करें और स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें. इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष घी का दीप जलाएं.
●  भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी, ऋतु फल और तिल का उपयोग करें. व्रत के दिन अन्न ग्रहण ना करें. शाम को पूजा के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं.
●  व्रत के दिन दूसरों की बुराई करने और झूठ बोलने से बचें. इसके अतिरिक्त तांबा, चावल और दही का दान करें.
●  एकादशी के अगले दिन द्वादशी को सूर्योदय के बाद पारण करें और जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन व दक्षिणा देकर व्रत खोलें.

परिवर्तिनी एकादशी व्रत की कथा

महाभारत काल के समय पाण्डु पुत्र अर्जुन के आग्रह पर भगवान श्री कृष्ण ने परिवर्तिनी एकादशी के महत्व का वर्णन सुनाया. भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि- हे अर्जुन! अब तुम समस्त पापों का नाश करने वाली परिवर्तिनी एकादशी की कथा का ध्यानपूर्वक श्रवण करो।त्रेतायुग में बलि नाम का असुर था लेकिन वह अत्यंत दानी, सत्यवादी और ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था. वह सदैव यज्ञ, तप आदि किया करता था. अपनी भक्ति के प्रभाव से राजा बलि स्वर्ग में देवराज इन्द्र के स्थान पर राज्य करने लगा. देवराज इन्द्र और देवता गण इससे भयभीत होकर भगवान विष्णु के पास गए. देवताओं ने भगवान से रक्षा की प्रार्थना की. इसके बाद मैंने वामन रूप धारण किया और एक ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि पर विजय प्राप्त की.

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- वामन रूप लेकर मैंने राजा बलि से याचना की- हे राजन! यदि तुम मुझे तीन पग भूमि दान करोगे, इससे तुम्हें तीन लोक के दान का फल प्राप्त होगा. राजा बलि ने मेरी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और भूमि दान करने के लिए तैयार हो गया. दान का संकल्प करते ही मैंने विराट रूप धारण करके एक पांव से पृथ्वी, दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग तथा पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया. अब तीसरे पांव के लिए राजा बलि के पास कुछ भी शेष नहीं था. इसलिए उन्होंने अपने सिर को आगे कर दिया और भगवान वामन ने तीसरा पैर उनके सिर पर रख दिया. राजा बलि की वचन प्रतिबद्धता से प्रसन्न होकर भगवान वामन ने उन्हें पाताल लोक का स्वामी बना दिया. मैंने राजा बलि से कहा कि, मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूँगा.

परिवर्तिनी एकादशी के दिन मेरी एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है. इस एकादशी को विष्णु भगवान सोते हुए करवट बदलते हैं.

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