बिलासपुर—- प्रकृति जो ना कराए कम है। कोरोना काल ने अच्छे अच्छे लोगों की परीक्षा ले लिया है। यह सच है कि सरकार अपने नागरिकों को लगातार महफूज रखने का प्रयास कर रही है। लेकिन यह भी सच है कि कोरोना काल में लोग बहुत निष्ठुर भी हो चले हैं। बाहर से आने वाले परिवार के सदस्यों के प्रति लोगों में बहुत अधिक उत्साहत नजर नहीं आ रहा है। बावजूद इसके सरकार अपनों को ढूंढ कर घर ला रही है। जिसकी हर तरफ तारीफ भी हो रही है।
आज मदर्स डे
जैसा की सबको मालूम है कि पूरी दुनिया आज के दिन को मदर्स डे के रूप में मनाती है। लेकिन कोरोना और मौत के भय ने लोगों को तोड़कर रख दिया है। लोग किसी की आवाज सुनने को तैयार नहीं है। इस बीच रश्मि सिंह को जानकारी मिलती है कि बेलपान क्षेत्र निवासी एक महिला सीता बाई की लाकडाउन 1 के समय इलाज के दौरान सिम्स में मौत हो गयी। उसके तीन बहुत ही छोटे बच्चे हैं। जो इस समय अकेले रहने को मजबूर है। रह रहककर अपने पिता और मां को याद करते हैं। तीनों की हालत बहुत खराब हो चली है। पिता कृष्ण मणि कर्माकर होशंगाबाद मध्यप्रदेश में रोजी मजदूरी का काम करता है। लाकडाउन के चलते पत्नी की अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो सका।
होशंगाबाद से निकल पड़ा पैदल
इस बीच करमाकर की नौकरी भी चली गयी। और फिर बच्चों से मिलने वह होशंगाबाद से पैदल ही तखतपुर के लिए निगल पड़ा। इस दौरान उसके साथ तखतपुर के और भी मजदूर परिवार सथ हो लिए।
मामले की जानकारी तखतपुर विधायक रश्मि सिंह तक पहुंची। तत्काल अनाथ बच्चों से मिल घर पहुंच गयी। इस दौरान मासूम बच्चों को रोता विलखता देख रश्मि सिंह टूट गयी। उन्हे जानकारी मिली कि पीड़ित बच्चों के पिता छिंदवाड़ा में फंसा है। उसके साथ तखतपुर के अन्य कई मजदूर परिवार कई छोटे बच्चों के साथ लगातार पैदल चल रहे हैं।
पत्नी ने सिम्स में तोड़ा दम..बच्चे अनाथ..अंतिम संस्कार में नहीं पहुंचा पिता
बताते चलें कि बेलपान क्षेत्र निवासी मजदूर परिवार का मुखिया कृष्ण मणि करमाकर और दउवा होशंगावाद स्थित एक फैक्ट्री में मजदूरी का काम करते हैं। गांव में करमाकर की पत्नी सीता बाई घर का काम काज के अलावा नन्हें बच्चों को पालन पोषण कर रही थी। लाकडाउन एक के दौरान सीता बाई की तबीयत बहुत खराब हो गयी। बिलासपुर स्थित सिम्स में भर्ती कराया गया। इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी। मामले की जानकारी होशंगावाद में कृष्ण मणि करमाकर तक पहुंची। लेकिन अंतिम संस्कार में शामिल नही हो पाया। इस बीच फैक्ट्री भी बन्द हो गयी। बेरोजगार हो चुका करमाकर कुछ दिन इंतजार के बाद अपने साथियों के साथ बच्चों को याद कर पैदल ही तखतपुर के लिए निगल पड़ा। लेकिन छिंदवाड़ा पहुंचने तक धैर्य ने जवाब दे दिया ।
राज्यपाल तक पहुंचा मामला
स्थानीय लोगों के प्रयास से वह छिंदवाड़ा में रूका और लोगों के सहयोग से अपना संदेश छत्तीसगढ़ की राज्यपाल तक पहुंचाया। बताते चलें कि राज्यपाल अनुसुइया उइके छिंदवाड़ा की रहने वाली है। राज्यपाल ने सरकार को मामले से अवगत कराया। लेकिन इस बीच अन्य लोगों के माध्यम से जानकारी तखतपुर विधायक रश्मि सिंह तक भी पहुंची।
बच्चों को देख भर आए आंसू
ठीक मदर्स डे के दिन रश्मि सिंह बच्चों से मिलने घर पहुंच गयी। बच्चों को रोता बिलखता देख विधायक मां का कलेजा जार जार हो गया। उन्होने मासूम बच्चों को विलखता देख ऐसा फैसला लिया जिसकी तत्काल उम्मीद लोगों को नहीं थी। यह जानते हुए भी सरकार की तरफ से प्रवासी मजदूरों को घर लाने का प्रयास सरकार कर रही है। बावजूद इसके उन्होने निजी व्यय पर बच्चों के खातिर पिता कृष्ण मणि कर्माकर को लेने एक बस छिंदवाड़ा के लिए रवाना कर दिया।
अन्य मजदूर भी आएंगे
सीजी वाल से बातचीत के दौराना रश्मि सिंह ने बताया कि बच्चों की मां का निधन हो गया है। हालात ऐसे हैं कि बिना पिता के बच्चों की सेवा मुश्किल है। विशेष परमिशन से बच्चों के पिता को लाने बस की व्यवस्था की गयी है। हमने यह भी प्रयास किया है कि जब बस जा रही है तो लाक़ाउन में फंसे बिलासपुर के अन्य मजदूर भी साथ आ जाए।
मानवता सबसे बड़ा धर्म..मैं भी मां हूं–रश्मि सिंह
तखतपुर रश्मि सिंह ने बताया कि देश के कोने कोने में फंसे सभी मजदूरों को सरकार परिवहन की व्यवस्था कर घर ला रही है। लेकिन यहां मामला पूरी तरह मानवता और ममता का है। कृष्ण मणि करमाकर सरकार के प्रयास से जरूर घर पहुंचता। लेकिन यहां इस दौरान बच्चों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। बच्चे अपने पिता को याद कर रहे हैं। पति बच्चों की मां के अंतिम संस्कार में शामिल नही हो सका। करमाकर घर का इकलौता कमाने वाला सदस्य है। ऐसी सूरत में उसे बच्चों के बीच रहना बहुत जरूरी है। बच्चों से मिलकर कलेजा छलनी हो गया है। इसलिए विशेष और निजी प्रयास से एक बस छिन्दवाड़ा भेजी हूं। प्रयास किया जा रहा है कि बस से अन्य प्रवासी भी घर लौट आए।
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