एग्रीकल्चर डेस्क. केंचुओं की मदद से कचरे को खाद में परिवर्तित करने हेतु केंचुओं को नियंत्रित वातावरण में पाला जाता है. इस क्रिया को वर्मीकल्चर कहते हैं, केचुओं द्वारा कचरा खाकर जो कास्ट निकलती है उसे एकत्रित रूप से वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं. जिसका उपयोग एक उत्तम किस्म के जैविक खाद के रूप में किया जाता है. जिससे जमीन की उर्वरा शक्ति तेजी से बढ़ती है.
केंचुआ कृषि में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान भूमि सुधार के रूप में देता है. इनकी क्रियाशीलता मृदा में स्वतः चलती रहती है. प्राचीन समय में प्रायः भूमि में केंचुए पाये जाते थे तथा वर्षा के समय भूमि पर देखे जाते थे. परन्तु आधुनिक खेती में अधिक रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों के लगातार प्रयोगों से केंचुओं की संख्या में भारी कमी आई है. जिस भूमि में केंचुए नहीं पाये जाते हैं उनसे यह स्पष्ट होता है कि मिट्टी अब अपनी उर्वरा शक्ति खो रही है तथा उसका ऊसर भूमि के रूप में परिवर्तन हो रहा है. केंचुआ मिट्टी में पाये जाने वाले जीवों में सबसे प्रमुख है. ये अपने आहार के रूप में मिट्टी तथा कच्चे जीवांश को निगलकर अपनी पाचन नलिका से गजारते हैं जिससे वह महीन कम्पोस्ट में परिवर्तित हो जाते हैं और अपने शरीर से बाहर छोटी-छोटी कास्टिग्स के रूप में निकालते हैं. इसी कम्पोस्ट को वर्मी कम्पोस्ट कहा जाता है. केंचुओं का प्रयोग कर व्यापारिक स्तर पर खेत पर ही कम्पोस्ट बनाया जाना सम्भव है.
केंचुओं का पालन ‘कृमि संवर्धन‘ या ‘वर्मी कल्चर’ कहलाता है.आज केंचुओं की कुछ ऐसी प्रजातियाँ विकसित कर ली गई हैं जिनको पालकर आप प्रतिदिन के कूड़ा-करवट को अच्छी खाद ‘वर्मी कम्पोस्ट’ में बदल सकते हैं. यह खाद इतनी शक्तिशाली होती है कि इसमें पौधों द्वारा चाहे गए कभी पोषक तत्व भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं तथा पौधे इनको तुरन्त ग्रहण कर लेते हैं.
वर्मी कम्पोस्ट विभिन्न तरीकों से तैयार की जा सकती है. इसे बनाने के लिए आप ईंट और सीमेंट के वर्मी टैंक बना सकते है. आजकल प्लास्टिक के बने रेडीमेड वर्मी बैग भी आते हैं जिनसे एक बार में 1500 किलो तक कम्पोस्ट बनाया जा सकता है. या फिर आप जमीन पर भी इसे बना सकते हैं. तीनो के लिए एक ही विधि का उपयोग किया जाता है. जमीन पर वर्मीबैड बनाने के लिये सर्वप्रथम सूखी डंठलों एवं कचरे को बैड की लम्बाई-चौड़ाई के आकार में बिछा दें. इस पर सब प्रकार के मिश्रित कचरे, जिसमें सूखा कचरा, हरा कचरा, किचन वेस्ट, घास, राख इत्यादि मिश्रित हो, उसकी करीब 4 इंच मोटी परत बिछा दें. इस पर अच्छी तरह पानी देकर उसे गीला कर दें. इसके ऊपर सड़ा हुआ अथवा सूखे गोबर के खाद की 3-4 इंच मोटी परत बिछा दें. इसे भी पानी से गीला कर दें.पानी का हल्का-हल्का छिड़काव करना है बहुत अधिक पानी डालना आवश्यक नहीं इस पर 1 वर्गमीटर में 100 के हिसाब से स्थानीय अथवा एक्सोटिक प्रजाति के जो भी केंचुए उपलब्ध हो वे छोड़े जा सकते हैं.
इसके ऊपर पुनः हरी पत्तियों का 2-3 इंच पतला परत देकर पूरे वर्मीबैड को सूखी घास अथवा टाट की बोरी से ढँक दिया जाता है. मेंढक, मुर्गियों अथवा अन्य पक्षियों एवं लाल चीटिंयों से वर्मीबैड को बचाना आवश्यक है.इस प्रकार वर्मीबैड बनाने के बाद पुनः कचरा डालने की आवश्यकता नहीं है. इस वर्मीबैड से कुछ दूरी पर इसी तरह कचरा एकत्र करके दूसरा वर्मीबैड तैयार कर सकते हैं. करीब 40-60 दिन बाद जब पहले वर्मीबैड खाद तैयार हो जाता है, तब उसमें पानी देना बन्द कर देते हैं व कल्चर बॉक्स की तरह ही इसमें से धीरे-धीरे ऊपर का खाद निकाल लिया जाता है. नीचे की तह खाद जिसमें सारे केंचुए होते हैं उसे दूसरे वर्मीबैड पर डाल दिया जाता है ताकि उसमें वर्मीकम्पोस्ट की क्रिया आरम्भ हो जाये ताजे निकाले गए वर्मीकम्पोस्ट के ढेर को भी वर्मीबैड के नजदीक ही रखा जाता है व उसमें पानी देना बन्द कर देते हैं. नमी की कमी की वजह से उसमें से केंचुए धीरे-धीरे नजदीक के वर्मीबैड में चले जाते हैं वर्मीकम्पोस्ट खेत में डालने के लिये तैयार हो जाता है. इस खाद में जो केंचुए के छोटे-छोटे अंडे व बच्चे होते हैं उनसे जमीन में प्राकृतिक रूप से केंचुओं की संख्या बढ़ती है.
यदि घर अथवा खेत में थोड़ा-थोड़ा कचरा एकत्र होता है तब बायोडंग पद्धति के अथवा चार गड्ढे के चक्रीय तंत्र का प्रयोग करके भी अच्छा वर्मीकम्पोस्ट तैयार किया जा सकता है. यदि कचरे व स्थान की उपलब्धता अधिक हो व बड़ी मात्रा में कम्पोस्ट तैयार करना हो तब छायादार जगह में पहले बायोडंग बनाकर एक महीने बाद वर्मीबैड तैयार करके खाद बनाया जा सकता है. इस पद्धति से व्यावसायिक स्तर पर भी खाद बनाई जा सकता है.
भोजन देने के 30-40 दिन बाद केंचुओं द्वारा पूर्ण जैविक पदार्थ/कचरा काले रंग के दानेदार वर्मीकास्ट में बदल जाता है. वर्मीकम्पोस्ट, वर्मीकास्ट एवं पूर्णतः सड़े हुए कचरे की खाद का मिश्रण होता है. वर्मीकम्पोस्ट बन जाने के बाद केंचुओं के कल्चर बॉक्स में पानी देना बन्द कर दिया जाता है. नमी की कमी की वजह से केंचुए बॉक्स में नीचे की ओर चले जाते हैं, इस समय खाद को ऊपर से निकालकर अलग से एक पॉलिथीन पर छोटे ढेर के रूप में निकाल लिया जाता है। इस ढेर को भी थोड़ी देर धूप में रखा जाता है ताकि केंचुए नीचे की ओर चले जाएँ. ऊपर का कम्पोस्ट अलग कर लिया जाता है. नीचे के कम्पोस्ट को केंचुओं सहित पुनःकल्चर बॉक्स में डालकर दूसरा चक्र शुरू कर दिया जाता है।
वर्मीकम्पोस्ट में साधारण मृदा की तुलना में 5 गुना अधिक नाइट्रोजन, 7 गुना अधिक फॉस्फेट, 7 गुना अधिक पोटाश, 2 गुना अधिक मैग्नीशियम व कैल्शियम होते हैं. प्रयोगशाला जाँच करने पर विभिन्न पोषक तत्वों की मात्रा इस प्रकार पाई जाती है-नाइट्रोजन 1.0-2.25 प्रतिशत, फास्फोरस 1.0-1.50 प्रतिशत, नाइट्रोजन 2.5-3.00 प्रतिशत.
वर्मी कम्पोस्ट एक अच्छी किस्म की खाद है तथा साधारण कम्पोस्ट या गोबर की खाद से ज्यादा लाभदायक साबित हुई है. इसके प्रयोग करने में निम्नलिखित लाभ है–
वर्मी कम्पोस्ट जैविक खाद का उपयोग विभिन्न फसलों में अलग-अलग मात्रा में किया जाता है. खेती की तैयारी के समय 2.5 से 3.0 टन प्रति हेक्टेयर उपयोग करना चाहिए। खाद्यान्न फसलों में 5.0 से 6.0 टन प्रति हेक्टेयर मात्रा का उपयोग करें। फल वृक्षों में आवश्यकतानुसार 1.0 से 10 किग्रा./पौधा वर्मी कम्पोस्ट उपयोग करें तथा किचन, गार्डन और गमलों में 100 ग्राम प्रति गमला खाद का उपयोग करें तथा सब्जियों में 10-12 टन/हेक्टेयर वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग करें.
वर्मी कम्पोस्ट बनाने की ट्रेनिंग सरकार द्वारा किसानों को या अन्य लोगों को जो इसमें रुचि रखते हैं उपलब्ध कराई जा रही है. आप इसके लिए जिले में उपस्थित कृषि विज्ञान केंद्र में या एग्रीकल्चर कॉलेज में संपर्क कर सकते हैं. कई ऐसे भी किसान हैं जो अन्य किसानों की मदद के लिए ट्रेनिंग देते हैं. इस व्यवसाय में विभिन्न फील्ड के लोगों ने जोड़कर एक अच्छा व्यवसाय तैयार किया है इसके माध्यम से वे लाखों-करोड़ों कमा रहे हैं. कोई भी व्यक्ति इसकी ट्रेनिंग लेकर छोटे स्तर पर शुरुआत कर वृहद स्तर पर वर्मी कंपोस्टिंग कर सकता है.
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