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गुटीय राजनीति से बच गयी लंकेश की जान..28 साल की परम्परा पर लटका ताला…निगम ने दिया कृत्रिम वित्तीय संकट का हवाला..लोगों में चर्चा..रावण को मिला अभयदान

बिलासपुर—राजनीति जो ना कराए..थोड़ा…। 26 जनवरी और 15 अगस्त के बाद दशहरा उत्सव भी पर गुटीय  राजनीति का पक्का रंग चढ़ता दिखाई दे रहा है। इस बार पुलिस मैदान में आयोजित होने वाले संभाग का सबसे बड़ा दशहरा उत्सव गुटीय राजनीति का शिकार हो गया है। बहुप्रतिक्षित पुलिस लाइन दशहरा उत्सव इस बार नहीं मनाया जाएगा। लोगों की माने तो इसकी वजह सिर्फ और सिर्फ गुटीय राजनीति है।

                          निगम सभापति शेष नजरूद्दीन ने बताया कि निगम इस समय वित्तीय संकट के दौर से गुजर रहा है। इसलिए पुलिस लाइन में रावण दहन कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जाएगा। मतलब साफ है कि निगम के पास इतना रूपया नहीं है। इसलिए जिले की विशेष पहचान बना चुके पुलिस लाइन दशहरा उत्सव मनाने की परम्परा को 28 साल बाल बन्द किया जा रहा है।

                                     जानकारी देते चलें कि 28 पहले तत्कालीन मेयर राजेश पाण्डेय और विधायक बीआर यादव ने फैसला किया कि प्रत्येक साल पुलिस लाइन मैदान में धूम धाम से दशहरा उत्सव मनाया जाएगा। दशहरा उत्सव का आयोजक नगर निगम करेगा। उत्सव की परम्परा कोरोना काल को छोड़कर बदस्तूर जारी रहा।

                जनता को इन्तजार था कि इस बार जिले का सबसे बड़ा रावण दहन कार्यक्रम पुलिस लाइन में आयोजित किया जाएगा। लेकिन निगम ने वित्तीय हवाला देकर कार्यक्रम पर ब्रेक लगा दिया। 

विरोधी पार्टी होने के बाद भी नहीं चढ़ा राजनीति का रंग

                   पुलिस दशहरा उत्सव का आयोजन राजेश पाण्डेय के प्रयास से साल 1995 में शुरू हुआ। गाइड लाइन के अनुसार पुलिस लाइन दशहरा उत्सव कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नगर विधायक होंगे। विधायक ही रावण का दहन करेंगे। मेयर समेत अन्य अथितिय़ों की भी उपस्थिति होगी। बताते चलें कि तत्कालीन समय राजेश पाण्डेय कांग्रेस समर्थित मेयर थे।बीआर यादव कांग्रेस विधायक थे। 

                                  बाद में चलकर शहर विधायक अमर अग्रवाल बने। निगम में …कभी कांग्रेस का तो..कभी भाजपा का मेयर चुना गया। बावजूद इसके दशहरा उत्सव पर राजनीति का रंग नहीं चढा। कभी बीआर यादव ने रावण दहन किया तो ज्यादातर समय भाजपा नेता अमर अग्रवाल ने रावण जलाया। दो साल के कोरोना काल के बाद जब नगर विधायक शैलेष पाण्डेय को रावण दहन करने और मुख्य अतिथि बनने का मौका मिला तो उत्सव पर गुटीय रंग चढ़ गया। और निगम पर वित्तीय संकट का बादल फट गया। हमेशा की तरह तर्क के साथ शैलेष पाण्डेय को किनारे कर दिया गया। 

लगता है सबसे बड़ा मेला

                 पुलिस लाइन दशहरा उत्सव का लोगों को साल भर इंतजार रहता है। यद्यपि रावण दहन का कार्यक्रम  शाम को होता है। लेकिन लोग जिले के दूर दराज गांव से आतिशबाजी देखने दोपहर से ही पुलिस लाइन मैदान पहुंचने लगते है। पहुंचने का सिलिसिला रावण दहन कार्यक्रम तक चलता है। सच तो यह है कि पुलिस लाइन का दशहरा उत्सव संभाग ही नहीं बल्कि प्रदेश की पहचान है।

जानबूझकर कार्यक्रमों से  रखा गया दूर

               नगर विधायक को 15 अगस्त और 26 जनवरी को झण्डा फहराने का अवसर नहीं मिला। इस बार तो हद हो गयी। सिर्फ आत्मसंतुष्टी के लिए बड़े उत्सव को रोकना बुद्धिमानी नहीं है। जनता के अनुसार शहर की नाली.सड़क देखने के बाद संभव है कि निगम पर वित्तीय संकट हो। लेकिन उत्सव पर रोक लगाना उचित नहीं है। क्योंकि शहर की साफ सफाई हो या ना हो ठेकेदारों का भुगतान कभी नहीं रोका जाता है। यदि रूपये का संकट है भी तो अन्य कार्यक्रमों की तरह राज्य शासन से दहशरा उत्सव के लिए मदद लिया जा सकता है।

नजरूद्दीन ने बताया वित्तीय संकट

             शेष नजरूद्दीन ने बताया कि निगम पर वित्तीय संकट है। ऐसी स्थिति में दशहरा उत्सव नहीं मनाया जाएगा। पुलिस लाइन रावण दहन कार्यक्रम को स्थगित किया गया है।

अधिकारी ने कहा..हमें कुछ नहीं कहना

                      निगम के एक अधिकारी ने बताया कि हमें इस विषय पर कुछ नहीं कहना है। कार्यक्रम होते रहते हैं। लेकिन हमें जनप्रतिनिधियों के निर्देश का पालन करना होता है। हम राजनीति में भी नहीं पड़ते। निगम के पास पर्याप्त संसाधन है। रारवण दहन कार्यक्रम को बन्द किया जाए…बहरहाल निगम की वित्तीय स्थिति इतनी भी खराब नहीं है।

लंकेश की बच गयी जान

               बहरहाल कांग्रेस की गुटीय राजनीति का फायदा लंकेश को मिला है। मुश्किल ही सही लेकिन लंकेश को 28 साल बाद बिलासपुर की गुटीय राजनीति से जीवनदान मिला है। राजनीति का पंडित रावण इतना तो जरूर सोचता होगा कि बेशक उसे हर साल मारा जाता है। लेकिन उसके समय बिलासपुर जैसी राजनीति कभी नहीं रही।

               

 

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