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…तो भूपेश होंगे पीएम पद के दावेदार

नेशन अलर्ट/www.nationalert.in
मृत्‍युंजय/रायपुर।
यदि कांग्रेस ने वापस छत्‍तीसगढ़ विधानसभा चुनाव जीत लिया तो ‘कका’ कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री पद के स्‍वभाविक दावेदार होंगे। अपनी मां सोनिया गांधी के नक्‍शेकदम पर चलकर राहुल गांधी द्वारा भूपेश बघेल का नाम खुद होकर प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में आगे बढ़ाया जा सकता है। …लेकिन इसके लिए कांग्रेस को छत्‍तीसगढ़ जीतना बेहद जरूरी है।

थोड़ा पीछे लौटते हैं… 2018 का विधानसभा चुनाव सिर पर था। थकी हारी कांग्रेस का नेतृत्‍व भूपेश बघेल कर रहे थे। उनके सामने 15 साल से राज्‍य की सत्‍ता में काबिज भाजपा और उसका भारी भरकम कोष था। भूपेश ने लेकिन हार नहीं मानी।

तमाम तरह के झंझावतों के बीच भूपेश ने कांग्रेस को इस हद तक अपने पैरों पर खड़ा करना चालू किया कि वह बिस्‍तर छोड़कर अचानक दौड़ने लगी। 2018 के विधानसभा चुनाव में लोगों की अपेक्षा के विपरित कांग्रेस ने 68 सीटों पर जीत हासिल की।

बाद में विधानसभा के उपचुनावों को जीतकर यह आंकड़ा 71 तक पहुंच गया। कांग्रेस ने पूर्व मुख्‍यमंत्री अजीत जोगी व देवव्रत सिंह के आकस्मिक निधन के बाद हुए उपचुनाव में क्रमश: मरवाही, खैरागढ़ की विधानसभा सीट जीत ली थी जबकि नक्‍सली हमले में शहीद हुए भीमा मंडावी की दंतेवाड़ा सीट कांग्रेस पहले ही जीत चुकी थी।

15 साल सत्‍ता में काबिज रही भाजपा की बेहद शर्मनाक हार यदि किसी प्रदेश में हुई थी तो वह भूपेश बघेल का छत्‍तीसगढ़ ही था। प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष रहते हुए भूपेश बघेल व उनकी टीम ने आरोप प्रत्‍यारोप के बीच भाजपा को महज 15 सीटों पर धकेल दिया था। भाजपा के लिए यह एक ऐसा झटका था जिसका एहसास उसे आज तक होता है।

छोटा प्रदेश, बड़ी जीत
छत्‍तीसगढ़ को सीटों के हिसाब से देश में एक छोटा प्रदेश माना जा सकता है। यहां विधानसभा की महज 90 सीटें हैं। लेकिन इन्‍हीं 90 सीटों में भूपेश बघेल ने 68 सीट पर कांग्रेस को विजयश्री दिलाकर बड़ी जीत उसके आंगन में डाली थी। कांग्रेस लंबे अरसे के बाद इस तरह के विजय तिलक से गौरवान्वित हुई थी।

अब जबकि छत्‍तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की आहट सुनाई दे रही है तो भूपेश बघेल के मुख्‍यमंत्री होते हुए कांग्रेस एक बार फिर से अपने पुराने प्रदर्शन को दोहराना चाहेगी। जिस तरह से पश्चिम बंगाल में ममता बैनर्जी, दिल्‍ली में अरविंद केजरीवाल, उड़ीसा में नवीन पटनायक जैसे नेता जीतकर सत्‍ता में वापस लौटे हैं ठीक उसी तरह बघेल की कप्‍तानी में कांग्रेस छग में लौटने का प्रयास कर रही है।

ओबीसी का बड़ा चेहरा
फिलहाल भूपेश बघेल कांग्रेस के भीतर और बाहर ओबीसी आबादी का बड़ा चेहरा माने जाते हैं। अन्‍य पिछड़ा वर्ग की आबादी देश में तकरीबन 52 फीसदी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ओबीसी वर्ग का ही सानिध्‍य मिलते रहा है।

अब छत्‍तीसगढ़ के मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल के रूप में कांग्रेस के भीतर एक ऐसा ओबीसी चेहरा तैयार हो गया है जो कि प्रधानमंत्री को स्‍वभाविक टक्‍कर देता नजर आ रहा है। भाजपा के हर उस आरोप पर बघेल ऐसा कुछ कर जाते हैं कि भाजपाई आरोप जनता को षडयंत्र नजर आते हैं।

एससी अध्‍यक्ष, ओबीसी पीएम
भूपेश बघेल के नेतृत्‍व में यदि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की तो वह पीएम पद के दावेदार हो जाएंगे। उस समय कांग्रेस इस बिंदु को आगे बढ़ा सकती है कि उसके राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष का दायित्‍व अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे संभाल रहे हैं जबकि प्रधानमंत्री पद का दावेदार ओबीसी वर्ग का है।

गहलोत-सिद्दारमैय्या क्‍यों हुए पीछे?
लोगों के बीच एक सवाल इस बात का उठाया जा सकता है कि राजस्‍थान के मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत व कर्नाटक के मुख्‍यमंत्री सिद्दारमैय्या वरिष्‍ठता के बावजूद क्‍यूंकर भूपेश बघेल से पीछे हो सकते हैं ? इस सवाल का भी जवाब है।

गहलोत ने राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बनने के समय हुए विवाद में जो कुछ जैसे भी किया अथवा उनके रहते हो गया उसका नुकसान उन्‍हें गांधी परिवार के विश्‍वास को खोकर चुकाना पड़ रहा है। सोनिया गांधी तो किसी तरह गहलोत पर विश्‍वास फिर से कर ले लेकिन राहुल और प्रियंका गांधी पहले जैसा विश्‍वास नहीं कर सकेंगे।

कर्नाटक के मुख्‍यमंत्री सिद्दारमैय्या आरक्षित वर्ग से आते हैं लेकिन उनके साथ सबसे कठिन परिस्थिति यह है कि वह उसी राज्‍य के मुख्‍यमंत्री हैं जिस राज्‍य से कांग्रेस के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष खड़गे आते हैं। खड़गे और सिद्दारमैय्या एक ही वर्ग से जुड़े हैं।

सोनिया के नक्‍शेकदम पर
राहुल गांधी को कांग्रेस के भीतर और बाहर प्रधानमंत्री पद का नैसर्गिक दावेदार बताया जाता है। लेकिन लोगों की इस सोच से हमें इत्‍तेफाक नहीं है। राहुल गांधी अपनी मां सोनिया गांधी की तर्ज पर ठीक उस तरह प्रधानमंत्री पद को ठुकरा सकते हैं जिस तरह 2004 में सोनिया ने ठुकराया था।

तब सोनिया ने प्रधानमंत्री पद के लिए अकस्‍मात डॉ.मनमोहन सिंह का नाम आगे बढ़ा दिया था। यह नाम इतना वजनदार था कि कांग्रेस के भीतर विरोध की कोई लहर नहीं उठी और 10 साल तक मनमोहन सिंह के नेतृत्‍व में देश पर कांग्रेस ने राज किया।

राहुल गांधी शायद ऐसा ही कुछ कर जाएं। ऐसा कर वह विपक्षी दलों के उन आरोपों को खारिज कर देंगे जो आरोप उन पर अथवा उनके परिवार पर सत्‍तालोलुप होने को लेकर लगते रहे हैं। सोनिया के बाद राहुल और प्रियंका के इर्द गिर्द कांग्रेस की राजनीति और रणनीति डोलती रही है। इस रणनीति का एक हिस्‍सा पीएम पद पर किसी और को आगे बढ़ाकर स्‍वयं को पीछे कर लेना भी हो सकता है।

इसके लिए बघेल से ज्‍यादा सक्षम कोई और नेता राहुल-प्रियंका को शायद ही देशभर में नजर आए। भूपेश के मुख्‍यमंत्री रहते हुए किंतु परंतु के बावजूद यदि कांगेस ने छत्‍तीसगढ़ विधानसभा चुनाव एक बार फिर से जीत लिया तो वह प्रदेश के अलावा देश के कका कहे जाने लगेंगे।

…लेकिन शर्त यह है कि कांग्रेस पहले छत्‍तीसगढ़ जीते और उसके बाद लोकसभा के चुनाव में उसका प्रदर्शन इतना मजबूत रहे कि वह अपना प्रधानमंत्री बना ले जाए। फिलहाल इंडिया नामक गठबंधन में प्रधानमंत्री पद के अनगिनत दावेदारों में भले ही भूपेश बघेल का नाम कहीं सुनाई न देता हो लेकिन यदि यह गठबंधन जीतता है तो एक छत्‍तीसगढि़या पीएम पद के लिए नैसर्गिक रूप से दावेदार माना जाएगा।

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