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पत्रकारिता की दुनिया को सूना कर गए भाऊ..योगदान को याद रखेगा बिलासपुर और पत्रकार…जब घुटना टेकने को किया मजबूर

बिलासपुर—प्रदेश में वैसे बिलासपुर को लेकर कई पहचान है। इसमें एक पहचान संस्कारधानी का भी है। इसके अलावा एक पहचान बिलासपुर की धारदार पत्रकारिता भी है। पत्रकारिता को धार देने तमाम लोगों के बीच एक नाम शशिकान्त कोन्हेर का भी है। जिन्होने बिलासपुर पत्रकारिता को उस ऊंचाई तक पहुंचाया..बिलासपुर पत्रकारिता का मान सम्मान अविभाज्य मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ बनने के बाद 23 साल बाद भी कायम है।

पत्रकारों की समस्या हो या शहर के विकास को लेकर कोई मुद्दा…शशिकान्त कोन्हेर ने जब भी बीड़ा उठाया…जिम्मेदारी के साथ निभाया। नए पत्रकारों के लिए हमेशा प्रेरणादायक रहे।  शशिकान्त को लोग प्यार से भाऊ कहते थे। भाऊ का मतलब बड़ा भाई..इस जिम्मेदारी को उन्होने हमेशा अंतिम सांस तक गंभीरता के साथ निभाया।

उन्होने कई बार मौत की चुनौती को स्वीकारा। लेकिन जैसा की होता है कि हर योद्धा का एक समय होता है। बावजूद इसके पत्रकारिता के योद्धा ने अन्त समय भी मौत से दो दो हाथ कर दांत खट्ठा किया। भाऊ उन बिरला पत्रकारों में है जिन्होने प्रिंट, इलेक्ट्रानिक और वेव मीडिया में रहकर जमकर कलम चलाया। कभी आग लिखा तो कभी पानी..कभी पसीना लिखा तो कभी आंख का आंसू..उन्होने जो भी लिखा..उसका असर आम जनमानस पर दिखाई दिया।

लेखन इतना सशक्त कि पत्रकारिता के स्तर को लेकर भाषण वाजी करने वालों का मुंह हमेशा बन्द ऱखने के लिए मजबूर होना पड़ा। उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास है..कि भाऊ वहां भी चैन से नहीं बैठेंगे…ना केवल सर्वहारा वर्ग के लिए कलम चलाएंगे..बल्कि व्यवस्था को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर देंगे। जैसे की बिलासपुर में रहने के दौरान उन्होने सड़क से लेकर सदन तक अन्याय के खिलाफ गरीबों की आवाज बनकर सिस्टम को घुटने टेकने के लिए मजबूर किया। भाऊ सीजी वाल परिवार आपको हमेशा याद रखेगा। सीजी वाल परिवार आपके निधन को अपनी निजी क्षति मानता है। क्योंकि इस परिवार को हमेशा आपका योगदान मिला। समस्त सीजीवाल परिवार अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

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