(सुधीर दंडोतिया की कलम से)
ग्वालियर चंबल के कांग्रेस के एक विधायक के बीजेपी में जाने की खबरों ने पिछले एक हफ्ते में खूब जोर पकड़ा। आखिरी समय पर कांग्रेस आलाकमान एक्टिव हुआ। नेताजी से फोन पर चर्चा की और उन्हें मनाया गया, लेकिन पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और है। खबर है की माननीय बीजेपी के दो टॉप लीडरों से कांग्रेस छोड़ने से पहले फोन पर बातचीत करना चाहते थे। उन्होंने इसके लिए मध्यप्रदेश भाजपा के नेताओं को 3 दिन की मोहलत दी थी, लेकिन बीजेपी के नेता टॉप लीडरों से 3 दिन के अंदर बात नहीं करवा पाए और मामला रफादफा हो गया।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों के पैसों के मामले हाथ काफी तंग रहे लेकिन बुंदेलखंड के कांग्रेस के एक प्रत्याशी अपनी लोकसभा में हेलीकॉप्टर के जरिए घूम-घूमकर प्रचार कर रहे हैं। नेताजी ने चुनाव प्रचार में ज्यादा खर्च खाते में न जुड़ जाए इसके लिए नायाब तरीका भी निकाला है। नेताजी कांग्रेस के सेकंड लाइन के स्टार प्रचारकों को समाज के हिसाब से अपने इलाके में प्रचार के लिए बुला रहे हैं और हेलीकॉप्टर की सवारी करवा रहे हैं। इससे उन्हें दो फायदे हो रहे हैं एक तो अलग अलग समाज में नेताजी जाकर उनके लिए माहौल बना रहे दूसरा स्टार प्रचारक के तौर पर हेलीकॉप्टर का खर्चा नेताजी के बजाय स्टार प्रचारक के खाते में जुड़ जाता है।
मामला मध्य प्रदेश के एक महत्वपूर्ण संभाग मुख्यालय का है। जहां एक समय पूरा संभाग चलाने वाले नेताजी का सम्मान अब कार्यक्रमों में जाने से काम हो रहा है। नेताजी को कार्यक्रमों में बुलाया जाता है तो पहले की तरह महत्वपूर्ण कुर्सी पर स्थान नहीं दिया जाता। ऐसा एक दो दफा हो चुका है। इससे आहत होकर नेताजी ने महत्वपूर्ण कार्यक्रमों से दूरी बनाना शुरू कर दिया है। दरअसल, एक समय पूरे संभाग में नेताजी की तू तू बोलती थी और संभाग की पहली कुर्सी उन्हीं से शुरू होती थी। सरकार में इस बार पद नहीं मिलने से शासकीय रूप से नेताजी का दूसरों की अपेक्षा कम हो गया है। यही कारण है कि अब पहली कुर्सी पर उनको स्थान नहीं दिया जा रहा है।
चुनाव में अपनी-अपनी लीड बनाने के लिए प्रत्याशियों ने एड़ी चोटी का जोर लगाए रखा है। लीड की दौड़ में शामिल नेता खुद की जीत सुनिश्चित मानकर तो चल ही रहे हैं। लेकिन इन्हें चिंता चुनाव जीतने से अधिक लीड की है, क्योंकि इन नेताओं का मानना है कि सबसे अधिक लीड वाले नेता को केंद्र में महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी मिलना तय है। केंद्र से सबसे बेहतर प्रतिफल मिले इसके लिए नेताओं ने अपने-अपने पर पूरा जोर लगाया है।
मध्यप्रदेश में एक तरफा माहौल के बीच मतदान के आंकड़ों को लेकर इन दिनों प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में चर्चा का दौर तेज हो गया है। दोनों चरणों में 2019 की तुलना में कम मतदान क्या हुआ, कांग्रेस उत्साहित नजर आने लगी है। अल्लाह की कांग्रेस मानकर चल रही है कि चुनाव में टक्कर चुनिंदा सीटों पर ही है। जीत हार का परिणाम तो 4 जून को पता चलेगा, लेकिन फिलहाल उत्साह इस बात को लेकर है कि मतदान प्रतिशत कम होने से बीजेपी की बड़ी लीड कम होगी।
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