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वाचिक परंपरा का प्रकृति-पर्यावरण से घनिष्ठ संबंध : आचला

रायपुर, 28 मई 2023 : आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान में विगत् 25 मई से चल रहे तीन दिवसीय जनजातीय वाचिकोत्सव का आज समापन आयुक्त सह संचालक ज्त्ज्प्, शम्मी आबिदी की उपस्थिति में हुआ। इस अवसर पर आबिदी ने कहा कि इस आयोजन के माध्यम से जनजातीय समाज की समृद्ध वाचिक परंपरा का संरक्षण, संवर्द्धन और अभिलेखीकरण संभव होगा।

बहुत सी ऐसी पूर्वज परंपराएं-मान्यताएं हैं, जिनका वर्णन स्थानीय साहित्य में उपलब्ध नहीं है। इस आयोजन के माध्यम से अब इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाना संभव होगा। आबिदी ने वाचिकोत्सव में प्रदेश के कोने-कोने से भाग लेने आए जनजातीय वाचिकगणों का अभिनंदन किया एवं आगे भी उनसे ऐसे ही सहयोग की अपेक्षा की।

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‘‘जनजातीय वाचिकोत्सव 2023’’ के अंतिम दिन आज जनजातियों में गोत्र व्यवस्था एवं गोत्र चिन्हों की अवधारणा संबंधी वाचिक परम्परा तथा जनजातियों की विशिष्ट परंपराएं, रीति-रिवाज, परंपरागत ज्ञान एवं विश्वास विषय पर जनजातीय वाचन हुआ। प्रथम सत्र की अध्यक्षता शेर सिंह आचला, विषय विशेषज्ञ, राजनांदगावं ने की। इस सत्र में कुल 15 जनजातीय वाचकों ने जनजातियों में गोत्र व्यवस्था एवं गोत्र चिन्हों की अवधारणा संबंधी विषय पर अपना ज्ञान साझा किया।

जनजातीय समाज में गोत्र उन लोगों के समूह को कहते हैं, जिनका वंश एक मूल पुर्वज से अटूटक्रम में जुड़ा होता है। इस अवसर पर बोलते हुए शेर सिंह आचला ने कहा कि जनजातीय वाचिक परंपरा का जीव-जंतुओं एवं प्रकृति-पर्यावरण से घनिष्ठ संबंध है क्योंकि आदिवासी समाज प्रारंभ से ही घने जंगलों में निवासरत रहा है। इसीलिए गोत्र के नामकरण में इनका प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।

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गोत्र व्यवस्था रोटी-बेटी के संबंध का परिचायक है-इतवारी मछिया ने कहा कि ‘‘गोत्र व्यवस्था जनजातीय समाज में रोटी-बेटी के संबंध का परिचायक है’’ अर्थात् एक ही गोत्र में विवाह वर्जित है। साथ ही उनमें एक ही रक्त संबंध होने का भाव भी पाया जाता है। उपस्थित जनजातीय वाचकों ने गोंड, राजगोंड, मुरिया, माड़िया, कंवर, बैगा, सवरा, कमार, बिंझवार एवं भतरा जनजाति में पाए जाने वाले गोत्र के विभिन्न प्रकार, गोत्र चिन्हों एवं उनसे संबंधित वाचिक ज्ञान को साझा किया।

द्वितीय सत्र की अध्यक्षता प्रो.अशोक प्रधान, विभागाध्यक्ष, मानवविज्ञान अध्ययनशाला, पं.रविशंकर शुक्ल वि.वि.रायपुर ने की। इस अवसर पर बालते हुए प्रो.अशोक प्रधान ने जनजातियों की विशिष्ट परंपराओं एवं राति-रिवाज का उल्लेख करते हुए कहा कि आदिवासी समाज की अपनी एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है जिसे संजोए रखना अत्यंत आवश्यक है।

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जनजातीय वाचिकोत्सव क आयोजन इस दिशा में उठाया गया एक प्रशंसनीय कदम है। इसके साथ ही उन्होंने कुछ जनजातियों में प्रचलित कठोर प्रथाओं में सुधार करने की आवश्यकता पर भी बल दिया। आज के सत्र में कुल 19 जनजातीय वाचकों ने जनजातियों की विशिष्ट परंपराएं, रीति-रिवाज, परंपरागत ज्ञान एवं विश्वास के संबंध में वाचिक ज्ञान साझा किया गया। इनके द्वारा गोदना, गोटुल, लाल बंगला, छट्टी, कुंडा मिलान, हलान गटटा, कुमारी भात, गांयता पखना आदि विषय पर विस्तार से अपने वाचिक ज्ञान को साझा किया।

उल्लेखनीय है कि आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा भारत सरकार जनजातीय कार्य मंत्रालय एवं राज्य शासन के सहयोग से ज्त्ज्प् संस्थान में इस तीन दिवसीय ‘‘जनजातीय वाचिकोत्सव 2023’’का आयोजन किया गया है। इसका मुख्य उददेश्य आदिवासी जीवन से संबंधित वाचिक परंपरा का संरक्षण, संवर्द्धन एवं उसका अभिलेखीकरण करना है। इसके अलावा ज्त्ज्प् संस्थान द्वारा इस दृष्टिगत एक पुस्तक का प्रकाशन भी किया जाएगा, जिसमें कार्यक्रम में प्रस्तुत किए गए विषयों के साथ-साथ राज्य के अन्य जनजातीय समुदाय के व्यक्तियों से प्राप्त आलेखों को भी शामिल किया जाएगा।

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