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सूरजपुर जिले के वह धार्मिक स्थल जहां से वनवास के वक्त गुजरे थे ‘राम’..अब भक्त माथा टेक मांगते है मन्नत..जानिए इन पर्यटक स्थल के बारे में

अंकित सोनी@ सूरजपुर। 500 वर्षों के एक लम्बे इंतज़ार के बाद एक तरफ अयोध्या में श्री राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा को लेकर जहां पूरा देश जश्न मनाने के तैयारियों में जुटा हुआ है ,,,वही आज हम आपको भगवान राम के वनों में बिताए वनवास के कुछ क्षणों के बारे में बताने जा रहे है। जब श्रीराम अयोध्या छोड़ कर निकले थे और वह जिस रास्ते से होकर गुजरे थे वहां आज भी लोग माथा टेक कर मन्नत मांगते है। आईये आपको सीधे ले चलते है सूरजपुर जहां ये धार्मिक स्थल आज भी मौजूद है जिन्हें सरकार ने राम वन गमन पथ के रूप में मान्यता भी दी है,,,

छत्तीसगढ़ का पुराना नाम कौशलपुर था जो भगवान राम का ननिहाल है इसलिये छत्तीसगढ़ में श्रीराम को भांजा कहकर भी सम्बोधित किया जाता है यह आप सभी जानते ही होंगे लेकिन धार्मिक मान्यता है कि सूरजपुर में भी भगवान राम के वनवास समय के कुछ ऐसे तथ्य मौजूद है जो त्रेता युग में भगवान श्री राम के वनवास के समय जंगलो में बिताए वक्त को दर्शाते हैं,,, यहाँ के लोग इन धामिर्क जगहों को लक्ष्मण पाव और सीता लेखनी रामगढ़ सारासोर रक्सगंडा के नाम से जानते हैं। भगवान श्री राम को जब 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उन्होंने अयोध्या का राज पाठ छोड़कर दण्डकारण्य के जंगलों मे अपने वनवास का समय बिताया था कहा जाता है कि दण्डकारण्य जाते समय वह सूरजपुर से होकर भी गुजरे थे यहाँ कई धार्मिक पर्यटक स्थल मौजूद है जो रामायण काल के समय प्रभु श्री राम के आगमन को दर्शाते हैं ,, यह सभी धार्मिक पर्यटक स्थल जिले सहित आसपास के लोगों के आस्था का बड़ा केंद्र हैं जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर पूजा अर्चना कर अपनी मन्नते मांगते हैं ।

सबसे पहले हम आपको रक्सगन्डा जलप्रपात की मन को मोह लेने वाली तस्वीरें दिखाते है फिर इससे त्रेता युग से जुड़े नाते को भी बताएंगे ,,,यह जलप्रपात जहां पूरे साल अपनी प्राकृतिक सुरन्दरता से सैलानियों को आकर्षित करता वहीं माना जाता है कि यहां प्रभु श्रीराम ने कई राक्षसों का संघार किया था रक्स का अर्थ राक्षस और गंडा का मतलब सैकड़ो से है ,,,इस कारण इस जलप्रपात का नाम रक्सगन्डा पड़ गया,,, शेष अन्य जगहों को लेकर प्राचीन मान्यता यह भी है कि सीता लेखनी में जो भित्ति चित्र देखने को मिलते हैं वह माता सीता ने वनवास के दिनों में स्वयं अपने हाथों से लिखे थे,,, लक्ष्मण पायन और लक्ष्मण पाव में श्री राम और लक्ष्मण के पद चिन्ह देखने को मिलते हैं,,, और मान्यताओं के अनुसार यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर अपनी मन्नत मानते हैं और पूजा अर्चना भी करते हैं।

अविभाजित सरगुजा अनादि काल से जहां वनों से घिरा हुआ रहा है,,, वही यहां के एक एक पत्थर अपने आप में राम के स्वरूप को दर्शाती है,,,आज भी यहाँ के लोगो के सुख दुख में राम का सुमिरन करते है। प्राचीन मान्यता है कि भगवान श्री राम माता जानकी और लक्ष्मन के संग जनकपुर के सीतामणि हरचौका से छत्तीसगढ़ में आये थे ,,,, उस दौरान यह पूरा इलाका दण्डकारण्य के नाम से जाना जाता था। जहाँ राम के चरण पड़े वह आज धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप विकसित किया गया है,,,मान्यताओं के अनुसार श्री राम वनवास के दिनों में सीतामणी हरचौका से होते हुए रक्सगन्डा पहुँचे। जिसके बाद वह सीता लेखनी,, राम लक्ष्मण पखना ,,, कुदरगढ़ ,, लक्ष्मन पयान,,,,, राम मंदिर सूरजपुर,, सरसोर बिलद्वार गुफा,, उसके बाद विश्वा ऋषि के आश्रम होते हुए रामेश्वर नगर में अपना समय व्यतीत किया ,,, जिसको अब गवर्नमेंट ने राम वन गमन पर्यटन परिपथ से जोडा है ,,,जहां लोग धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पहुंचकर पूजा अर्चना कर अपनी मन्नत मांगते हैं।

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