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CG आरक्षण अधर में-भविष्य अंधेरे में : राज्यपाल ने आरक्षण विधेयक पर कोई निर्णय नहीं लिया या रोककर रखना ही निर्णय

रायपुर. छत्तीसगढ़ में आरक्षण संशोधन विधेयक को लेकर शुक्रवार को आई एक खबर ने हलचल मचा दी. खबर यह थी कि राज्यपाल ने आरक्षण संशोधन विधेयक को राज्य सरकार को लौटा दिया है. इससे राजनीतिक गलियारे में न सिर्फ हलचल मची, बल्कि युवाओं के मन में फिर से कौतुहल हो गया कि अब राज्य सरकार का अगला कदम क्या होगा? दरअसल, दिसंबर में विशेष सत्र में जो संशोधन विधेयक पारित किया गया था, वह अब तक राजभवन में लंबित है. तब राज्यपाल के पद पर अनुसुइया उइके थीं और अब बिश्वभूषण हरिचंदन हैं. अब अहम सवाल यह है कि राज्यपाल ने आरक्षण संशोधन विधेयक पर कोई निर्णय नहीं लिया या रोककर रखना ही निर्णय है? सवाल इसलिए अहम है, क्योंकि आरक्षण के अधर में होने से बड़ी संख्या में युवाओं का भविष्य अंधेरे में है. एक-दो सौ या हजार नहीं, बल्कि पांच लाख से ज्यादा युवाओं और इतने ही परिवारों का भविष्य अंधेरे में है.

राजभवन की ओर से शाम को विधेयक को लौटाने की खबर को गलत बताया गया है. यहां आपको बता दें कि झारखंड में राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने आरक्षण संशोधन विधेयक को लौटा दिया है. इसके बाद ही छत्तीसगढ़ में यह चर्चा छिड़ी कि यहां भी राज्यपाल ने ऐसा किया है. राजभवन की ओर से अधिकृत तौर पर मना करने के बाद यह साफ हो गया है कि यहां आरक्षण संशोधन विधेयक अधर में ही है. साथ ही, बड़ी संख्या में युवाओं का भविष्य भी अधर में है, जिनकी परीक्षाएं अटकी हुई हैं या परिणाम अटके हुए हैं. नई भर्तियां भी अधर में है. सिर्फ नौकरी ही नहीं, बल्कि एडमिशन में भी समस्या आ सकती है.

छत्तीसगढ़ में आरक्षण संशोधन विधेयक को लेकर पिछले पांच महीने से बयानबाजी और राजनीति का दौर जारी है. तत्कालीन राज्यपाल अनुसुइया उइके का यह बयान आया था कि राज्य सरकार विधेयक लाए तो वे तुरंत दस्तखत करेंगी. एक और दो दिसंबर को विशेष सत्र में संशोधन विधेयक जिसमें अनुसूचित जनजाति को 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत और इडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) को 4 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान है, को सर्व सम्मति से पारित किया गया. इसके बाद राज्य सरकार के पांच मंत्री यह विधेयक लेकर तत्कालीन राज्यपाल उइके के पास गए थे. हालांकि उन्होंने दस्तखत नहीं किया. उनका यह बयान भी आया कि उन्होंने सिर्फ आदिवासियों के आरक्षण के संबंध में विशेष सत्र बुलाकर विधेयक पारित करने पर तुरंत हस्ताक्षर करने की बात कही थी.

विधिक सलाहकार की राय और दस सवाल

संशोधन विधेयक पारित होने के बाद तत्कालीन राज्यपाल अनुसुइया उइके ने कहा था कि वे अपने विधिक सलाहकार से रायशुमारी करेंगी. उसके बाद निर्णय लेंगी कि दस्तखत करना है या नहीं. इसके बाद राजभवन की ओर से दस सवाल भेजे गए. इसका जवाब राज्य सरकार ने दिया, लेकिन पहले यह सवाल किया कि वे किस अधिकार से सीधे विभागों से सवाल कर रही हैं? क्या राज्यपाल को यह अधिकार है. राज्य सरकार की ओर से जवाब भी दिया गया. इसके बाद राजभवन की भूमिका पर कई सवाल किए गए लेकिन जवाब नहीं आया. राजभवन से जवाब आया भी तो इस शक्ल में आया कि विधेयक को नहीं लौटाया गया है.

ये भर्तियां अटकीं

पीएससी-2021 का इंटरव्यू हो चुका है. रिजल्ट नहीं आया है.

वन सेवा परीक्षा के अंतर्गत अभी इंटरव्यू बाकी है.

असिस्टेंट डायरेक्टर रिसर्च की परीक्षा हो चुकी है. रिजल्ट बाकी है.

आयुर्वेद मेडिकल ऑफिसर की परीक्षा हो चुकी है. रिजल्ट बाकी है.

इंजीनियरिंग सर्विस-2021 की परीक्षा हो चुकी है. रिजल्ट बाकी है.

फिजियोथेरेपिस्ट के लिए परीक्षा हो चुकी है. रिजल्ट जारी होना बाकी है.

प्यून भर्ती के अंतर्गत परीक्षा हो चुकी है, लेकिन रिजल्ट बाकी है.

सीएमओ-2022 भर्ती परीक्षा हो चुकी है. रिजल्ट अभी बाकी है.

साइंटिफिक ऑफिसर के लिए परीक्षा हो चुकी है. रिजल्ट बाकी है.

सब इंस्पेक्टर की अभी परीक्षा ही पूरी नहीं हो सकी है.

इसके बाद अभी शिक्षकों की भर्ती, सहायक विकास विस्तार अधिकारी, हॉस्टल वार्डन, लेबर इंस्पेक्टर, रेवेन्यू इंस्पेक्टर और सिंचाई विभाग के अंतर्गत अमीन पटवारी भर्ती के लिए आवेदन ही जारी नहीं किया गया है.

राज्यपाल विधेयक लौटा देते तो?

यह सवाल उठता है कि यदि राज्यपाल विधेयक लौटा देते तो क्या होता? छत्तीसगढ़ कॉलेज में लॉ के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. भूपेंद्र करवंदे के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 200 में स्पष्ट प्रावधान है कि यदि राज्यपाल विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटा देते हैं तो जिन बिंदुओं में अपनी आपत्ति के साथ लौटाते हैं, उन्हें दूर कर या उसी स्थिति में फिर से पारित कर यदि सरकार फिर से विधेयक को राज्यपाल के पास भेजती है तो उसे मंजूरी देनी होगी. राज्यपाल कब तक विधेयक को अपने पास रख सकते हैं? इस सवाल के जवाब में डॉ. करवंदे का कहना है कि इस संबंध में कोई समय सीमा नहीं है. राज्यपाल किसी विधेयक को मंजूरी देंगे, पुनर्विचार के लिए लौटाएंगे, अपने पास रख लेंगे या राष्ट्रपति को भेज सकते हैं.

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