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CG Assembly Election- छत्तीसगढ़ का चुनावी “मैच” …किसकी “पिच” पर ?

CG Assembly Election/रुद्र अवस्थी/इन दिनों दुनिया भर में लोकप्रिय खेल क्रिकेट का वर्ल्ड कप चल रहा है। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में चुनावी मैदान पर ज़ोरआज़माइश का दौर  है। इन दोनों के बीच एक अजब इत्तेफाक दिखाई देता है। जैसे क्रिकेट में पिच की अहमियत है। ठीक उसी तरह लगता है, जैसे चुनाव के मैदान में भी अपने  मुताब़िक मुद्दे सामने लाकर अपने हिसाब़ का पिच बनाने जैसी तैयारी दिख रही है । देखना दिलचस्प है कि चुनावी मैदान की पिच किसके हिसाब से तैयार हो रही है और कौन – किसके पिच पर खेलने को मजबूर हो रहा है।

CG Assembly Election/देश की सियासत पर बात करें तो पिछले कुछ अरसे से बीजेपी ही अपने अनुकूल पिच बनाती रही है। विरोध में खड़ी पार्टियों को उसके हिसाब से ही खेलना पड़ता रहा है। लेकिन छत्तीसगढ़ में लगता है कांग्रेस और सीएम भूपेश बघेल ने बीजेपी के इस दांव को ही उलट कर आजमाने की कोशिश की है। जिसके चलते छत्तीसगढ़ में राजनीतिक विमर्श का मुद्दा किसान – धान और गांव के इर्द-गिर्द सिमटता जा रहा है । छत्तीसगढ़ में भावनात्मक मुद्दों की जगह आम लोगों से जुड़े मुद्दों को अहमियत देते हुए कांग्रेस ने ऐसी पिच तैयार करने की कोशिश की है, जिसमें बीजेपी को भी मजबूर होकर खेलना पड़े।इस पर बीजेपी के रुख़ पर लोगों की नज़र लगी हुई है।

छत्तीसगढ़ में किसानों की आबादी 75 फ़ीसदी से भी अधिक मानी जाती है ।यहां के किसान धान की खेती के भरोसे ही बसर करते हैं। छत्तीसगढ़ की सियासत में धान की एंट्री 2018 में हुई। जब कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में ढाई हजार रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से धान खरीदी का वादा किया। 2018 के चुनाव के दौरान वह ऐसा समय था, जब धान की फसल कट कर तैयार थी। लेकिन किसानों ने अपना धन तब तक बेचना शुरू नहीं किया, जब तक की छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की नई सरकार नहीं बन गई।

राजनीतिक प्रेक्षकों ने उस समय इसे छत्तीसगढ़ में बदलाव की ओर इशारा मान लिया था। और हुआ भी वही। 15 साल चली बीजेपी की सरकार 15 सीटों पर सिमट गई तो इसकी एक वजह धान की कीमत भी मानी गई। 2018 में कांग्रेस ने किसानों की कर्ज माफी का भी वादा किया था। उस समय सरकार बनते ही कैबिनेट की पहली मीटिंग में कर्ज माफी के फैसले पर मोहर लगाई गई। इसके बाद किसानों के ख़ाते में कई किस्तों में धान का बोनस जमा कर सरकार ने किसानों को यह एहसास कराया कि वह अपना वादा पूरा कर रही है। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ की संस्कृति, तीज- त्यौहार और परंपराओं पर फोकस करने की वजह से भी कांग्रेस और भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ में राजनीतिक विमर्श को किसान – धान – गांव  – छत्तीसगढ़िया के मुद्दे के इर्द-गिर्द ले आए।

2023 के मौजूदा चुनाव में भी लोगों की नजर इस मुद्दे पर है। हाल ही में सीएम भूपेश बघेल ने जिस तरह दोबारा सरकार बनने पर फिर से किसानों की कर्ज माफी का वादा किया है। उससे छत्तीसगढ़ का चुनाव एक बार फिर किसानों के नजदीक ही पहुंच गया है। हालांकि राजनीतिक हल्कों में ये सवाल भी उठते रहे हैं कि कांग्रेस सरकार ने अगर किसानों का भरोसा जीता है तो फिर से कर्ज माफी का वादा करने की जरूरत क्यों पड़ी …. ? कांग्रेस के लोग इसके जवाब में बहुत सी दलीलें दे सकते हैं। इस नजरिए से अगर कांग्रेस के इस रुख को सुरक्षात्मक कदम माना जाए तो दूसरी तरफ इसमें आक्रामकता की भी झलक देखी जा सकती है । अलबत्ता इसके पीछे एक तरह से रणनीति को भी समझा जा सकता है कि कांग्रेस छत्तीसगढ़ में अपने हिसाब से बनाई हुई पिच पर चुनावी मैच खेलने की तैयारी में है।

किसानों की कर्ज माफी के अलावा कांग्रेस की ओर से महिलाओं को गैस सिलेंडर पर सब्सिडी, बिजली बिल में राहत, एक्सीडेंट होने पर निशुल्क इलाज़ की सुविधा , केजी से पीजी तक मुफ़्त शिक्षा और किसानों की तीवरा फसल भी समर्थन मूल्य पर खरीदने का ऐलान कर दिया है। इसी बीच छत्तीसगढ़ के चुनावी दौरे पर आए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक गांव में किसानों के बीच खेत पर उतरकर धान काटने के लिए हाथ में हंसिया उठाया तो सियासी हल्कों में इसे भी चुनाव की दिशा की ओर एक संकेत माना गया ।

राहुल गांधी ने राजनांदगांव की चुनावी रैली में ज्यादातर समय धान और किसानों पर ही बात की । उन्होने यह समाझाने की कोशिश की कि कांग्रेस ने 2018 में 2,500 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से धान खरीदने का वादा किया था । आज़ किसानों को उससे अधिक ही दाम मिल रहा है।राहुल गांधी यह वादा भी कर गए कि आगे मौक़ा मिला तो इसे तीन हज़ार रुपए प्रति क्विंटल तक ले जाएंगे।

घोषणा पत्र जारी होने से पहले की जा रही सिलसिलेवार घोषणाओं को देखते हुए लगता है कि कांग्रेस भावनात्मक मुद्दों की बजाय आम लोगों से जुड़े मुद्दों को ही चुनाव में चर्चा का मुद्दा बनाने की कोशिश में है। जाहिर सी बात है कि लोग अब बीजेपी के घोषणा पत्र की ओर टकटकी लगाए हुए हैं।

बीजेपी इन मुद्दों का जवाब किस तरह देगी, यह दिलचस्पी के साथ देखा जा रहा है। मुमकिन है बीजेपी अपने घोषणा पत्र में छत्तीसगढ़ के किसानों और आम शहरी लोगों की बेहतरी के लिए कांग्रेस के मुकाबले और अधिक असरदार वादे सामने लेकर आए। या यह भी हो सकता है की मौजूदा चुनाव को किसी नए एंगल की ओर मोड़ने की कोशिश करे। लेकिन अब तक के माहौल से लगता है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने जो मुद्दे चुनावी फिजा में छोड़े है, फिलहाल लोगों को बीजेपी की ओर से इन्ही मुद्दों के जवाब का इंतजार है। चुनाव के शुरूआती दौर में पहले उम्मीदवारों की लिस्ट पर बहस चल रही थी। सभी पार्टियों की लिस्ट सामने आने के बाद अब चुनावी मुद्दे पर बहस हो रही है। देखना यह है कि क्या कांग्रेस की ओर से बनाई जा रही पिच पर चुनावी मैच होगा या बीजेपी कोई नया मुद्दा सामने लाकर एक अलग तरह का मैदान तैयार करेगी ?

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