Difference in Shahi Snan and Amrit Snan/प्रयागराज में महाकुंभ मेला अपने चरम पर है और हर ओर श्रद्धा और भक्ति की गूंज सुनाई दे रही है।
Difference in Shahi Snan and Amrit Snan/श्रद्धालु संगम तट पर उमड़ रहे हैं, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का पावन संगम होता है। इस महापर्व में शाही स्नान का विशेष महत्व है, जिसे लेकर लोगों के बीच उत्साह चरम पर है। हालांकि, शाही स्नान और अमृत स्नान को लेकर कई भ्रम भी फैले हुए हैं। कुछ लोग सभी प्रमुख स्नानों को शाही स्नान मान रहे हैं, जबकि सच्चाई इससे अलग है। इस लेख में हम इस महापर्व के महत्व, शाही स्नान की परंपरा और इसकी दिव्यता को विस्तार से समझेंगे।
Difference in Shahi Snan and Amrit Snan/महाकुंभ का आयोजन एक दिव्य संयोग का प्रतीक है। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब देवताओं और दानवों के बीच अमृत कलश को लेकर संघर्ष हुआ, तो अमृत की कुछ बूंदें गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल पर गिरीं। इन्हीं पवित्र बूंदों के कारण प्रयागराज को तीर्थराज का स्थान प्राप्त हुआ और यहां कुंभ और महाकुंभ का आयोजन किया जाने लगा। जब भी प्रयागराज में महाकुंभ लगता है, तब पौष पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक विभिन्न अवसरों पर अमृत स्नान का महत्व होता है।
Difference in Shahi Snan and Amrit Snan/शाही स्नान की विशेषता यह है कि इसमें देशभर के 13 प्रमुख अखाड़े शामिल होते हैं। इन अखाड़ों के नागा संन्यासी और संत अपनी पारंपरिक परंपराओं के अनुसार स्नान में भाग लेते हैं। जब ये संत पूरी गरिमा के साथ विशेष वेशभूषा, तलवार, गदा, और पारंपरिक आभूषणों के साथ संगम में स्नान करने पहुंचते हैं, तो इसे शाही स्नान कहा जाता है। यह नजारा अत्यंत भव्य और रोमांचक होता है, जिसे देखने के लिए लाखों श्रद्धालु संगम तट पर एकत्रित होते हैं।
शाही स्नान को लेकर यह सवाल अक्सर उठता है कि क्या इसके लिए कोई विशेष धार्मिक मुहूर्त तय किया जाता है। वास्तव में, शाही स्नान के लिए किसी धार्मिक या आध्यात्मिक मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती। इसके आयोजन का समय मेला प्रशासन और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद द्वारा निर्धारित किया जाता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि सभी अखाड़ों के संत समयानुसार स्नान कर सकें और मेले का आयोजन सुचारू रूप से संपन्न हो।
महाकुंभ में कुल छह प्रमुख स्नान होते हैं, लेकिन इनमें से केवल तीन को ही शाही स्नान की श्रेणी में रखा जाता है। पहला शाही स्नान मकर संक्रांति के दिन, दूसरा मौनी अमावस्या को और तीसरा बसंत पंचमी के अवसर पर संपन्न होता है। इन तीन विशेष स्नानों में अखाड़ों के संतों का भव्य स्वागत किया जाता है, और वे पूरी दिव्यता के साथ संगम तट पर स्नान करने के लिए पहुंचते हैं।
शाही स्नान का सबसे बड़ा आकर्षण नागा संन्यासियों की पेशवाई होती है, जिसमें वे भव्य जुलूस के साथ स्नान के लिए निकलते हैं। इस दौरान हाथी, घोड़े, रथ और पारंपरिक ध्वजों के साथ संतों का शाही आगमन होता है, जो मेले के भव्य दृश्य को और अधिक दिव्य बना देता है।
शाही स्नान केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, आस्था और सनातन परंपराओं का भव्य संगम है। इस अवसर पर श्रद्धालु अपने जीवन की बाधाओं से मुक्ति की कामना करते हैं और आध्यात्मिक ऊर्जा से स्वयं को भरने का प्रयास करते हैं। इस दौरान संत-महात्माओं के प्रवचन भक्तों को ज्ञान, भक्ति और साधना का मार्ग दिखाते हैं।
महाकुंभ का हर दिन अपने आप में एक नया अनुभव लेकर आता है, जो आध्यात्मिक प्रेरणा और मन, वचन और कर्म की शुद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है। यह पर्व केवल स्नान का नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति की कामना का प्रतीक है।
महाकुंभ मेले का आयोजन हर 12 वर्षों में होता है, और यह अवसर देशभर के कोने-कोने से श्रद्धालुओं को जोड़ता है। यहां कोई राजा होता है, न कोई रंक—हर कोई श्रद्धा, भक्ति और आस्था के इस महासंगम का हिस्सा बनकर स्वयं को कृतार्थ अनुभव करता है। यही कारण है कि महाकुंभ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता की गहरी जड़ों का प्रतीक भी है।