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‘Minus 31-The Nagpur Files’ रिलीज, कोविड-19 के क्रूर काल से उपजे अपराध की कहानी

23.7.23|  “हर लड़ाई में हीरो बनना ज़रूरी नहीं होता!”

प्रतीक मोइत्रा की डेब्यू डायरेक्टेड “माइनस 31” द नागपुर फ़ाइल्स फिल्म कोविड-19 के क्रूर काल में पैसा कमाने के मौके की फ़िराक़ में घात लगाए बैठे लोगों के ज़हन से उपजे अपराध की कहानी है। वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों ने बड़ी तेज़ी से बदलती हुई जीवन शैली के साथ अहम बदलाव किये हैं। उन दिनों जब देश और दुनिया के चप्पे – चप्पे में कोरोना का ख़ौफ़ अज़ाब का लिबास पहने घूम रहा था।तब एक बड़ा तबका इंसानों की ज़रूरतों का फ़ायदा उठाकर अपनी तिजोरी भरने में मसरूफ़ था ।

आपको याद ही होगा कोरोना महामारी के दौरान अचानक  रेमडेसिविर इंजेक्शन की डिमांड बढ़ गई थी । अर्थशास्त्र कहता है जब किसी चीज़ की डिमांड ज़्यादा बढ़ जाती है और सप्लाई कम होने लगती है तब इसकी  कालाबाज़ारी बढ़ जाती है। कोरोना महामारी में रेमडेसिविर इंजेक्शन की डिमांड बढ़ने से ठीक वैसा ही हुआ ।आलम यह था कि उन दिनों नागपुर जैसे शहर में रेमडेसिविर इंजेक्शन 40-40 हज़ार रुपए या इससे ज़्यादा क़ीमत में बिकने लगे थे । इसी ज़मीन पर माइनस 31 की कहानी को गुथा गया है ।रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाज़ारी से एक मर्डर मिस्ट्री जोड़कर युवा और रचनाशील निर्देशक प्रतीक मोइत्रो ने एक अच्छी सिनेमाई कहानी कहने की क़ामयाब कोशिश की है।

फिल्म ‘माइनस 31-द नागपुर फाइल्स’ की शुरुआत एक मर्डर मिस्ट्री से होती है। शहर के एक नामी गिरामी बिजनेसमैन की हत्या करके उसे उस जगह फेंक दिया जाता है जहां पर कोरोना से मर रहे लोगों को जल प्रवाह किया जाता है। ब्रिज़ के ऊपर से लाश फेंकने वाले उस शख़्स की पहचान इसलिए नहीं हो पाती क्योंकि वह मास्क पहने हुए होता हैं । पुलिस को पता चलता है और मामले की छानबीन शुरू होती है । और कई -कई ट्विस्ट और टर्न्स के साथ अपना सफ़र करते हुए क्लाइमैक्स तक पहुँचती हैं चूंकि फ़िल्म मर्डर मिस्ट्री है इसीलिए उसकी परतों को न खोलना बेहतर है।

इस फिल्म के बारे में अमन कबीर का कहना है की बतौर फ़िल्म निर्देशक के तौर पर यह प्रतीक मोइत्रो की पहली फ़िल्म हैं। कुछ सीन्स को छोड़ दिया जाए तो प्रतीक ने अपनी ज़िम्मेदारी अच्छे से निभाई हैं। कुछ लोगों ने अपनी समीक्षा में यक़ीनन फ़िल्म डायरेक्शन की ख़ामिया गिनाई हैं अच्छी बात है….लेकिन यह देखना क्या ज़रूरी नहीं की उसमें खूबियां कितनी गिनाई जा सकती हैं? बहरहाल फ़िल्म अच्छी बन पड़ी है। सभी डिपार्टमेंट में एफर्ट्स दिखते हैं।जहां तक फिल्म में परफार्मेंस की बात है, तो रघुवीर यादव ने परफार्मेंस से कहीं न उम्मीद नहीं किया । जया भट्टाचार्य ने वरिष्ट पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई है। रुचा ईमानदार ने सब इंस्पेक्टर की भूमिका निभाने में ख़ासी मेहनत की है, जो दिखती है उनका स्क्रीन प्रजेंस अच्छा रहा है। यक़ीनन रुचा आने वाले वक़्त में निखर कर आएँगी। राजेश शर्मा कमाल के मंजे हुए एक्टर हैं, उन्हें कुछ ज़्यादा वक़्त दिया जा सकता था। ऋतु राज ने कम लेकिन अच्छा काम किया है।बाक़ी एक्टर्स ने अपना काम ईमानदारी से किया है।फिल्म की सिनेमैटोग्राफी, एडिटिंग , बैक ग्राउंड म्यूज़िक फ़िल्म के मुताबिक है। फिल्म का संगीत टिकटॉक किरदारों पर फिल्माए गए हैं इसीलिए उसे अच्छा या बुरा नहीं कहा जा सकता। नये लेखक के तौर पर ऐसे सब्जेक्ट को कह पाना आसान नहीं होता इसीलिए फ़िल्म की राइटर चारुलता मोइत्रा जो फ़िल्म के निर्देशक की बहन भी हैं उनके एफर्ट्स की तारीफ़ की जानी चाहिए।
“माइनस 31” की टीम में ज़्यादातर नये तकनीशियन हैं। और सभी ने अपने -अपने हिस्से का काम अपने हिसाब से बेहतर किया है। इसीलिए इस पूरी टीम की हौसला अफ़ज़ाई की जानी चाहिए। फ़िल्म देखी जानी चाहिए।

 

https://chhattisgarhtimes.in/2023/07/23/prateek-moitras-minus-31-the-nagpur-files-a-crime-story-born-out-of-the-brutal-times-of-covid-19/