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एक अनोखी परंपरा के कारण ये पूरा गांव है एक दूसरे का रिश्तेदार, यहाँ आज तक तलाक का एक भी मामला नहीं

शहडोल

शहडोल में रिश्तों की भूल भुलैया वाला अनोखा गांव है, जहां एक विशेष समुदाय का पूरा गांव रिश्तेदार है। एक व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति से कम से कम तीन रिश्तों में जुड़ा है। दरअसल इन सबके पीछे गांव में सदियों पुरानी चली आ रही एक परंपरा है। इस अनोखी परंपरा के कारण गांव के लड़के लड़कियों की शादी गांव में हो रही है। जिस कारण आज पूरा गांव एक दूसरे का रिश्तेदार बन बैठा है। हालाकि अब कुछ शादियां गांव के बाहर भी होने लगी हैं, लेकिन उनकी संख्या अभी भी न के बराबर है। ग्रामीणों के अनुसार गांव में होने वाली शादियों की संख्या 500 के पार जा चुकी है।

ट्रॉली में रखते हैं पकवान
जब गांव में किसी के यहां कोई आयोजन या विशेष कार्य होता है तो पकवान जैसे पूड़ी को बनाकर ट्रैक्टर की ट्रॉली में रखा जाता है। निमंत्रण में पूरा का पूरा गांव उमड़ आता है। यहां धार्मिक आयोजन बहुत ज्यादा संख्या में होते हैं। लगभग हर घर में भागवत कथा का आयोजन हो चुका है। इस गांव में आए दिन कोई न कोई धार्मिक आयोजन होता है।

कुर्मी पटेलों के लिए जाना जाता है खन्नाथ
शहडोल जिले की ग्राम पंचायत खन्नाथ कुर्मी पटेल बाहुल्य है। चार हजार से ज्यादा की आबादी वाले इस गांव की कुल आबादी में से 60 प्रतिशत से ज्यादा पटेल समुदाय के लोग निवासरत हैं। इस कारण इस गांव को पटेलों का गांव भी कहा जाता है।

आठ गांव में हैं सबसे ज्यादा रिश्तेदारी
खन्नाथ समेत आसपास के कुल आठ गांव हैं, जहां पटेल समुदाय की लगभग पूरी रिश्तेदारी जद में आ जाती है। इनमें बोडरी, पिपरिया, खैरहा, नौगांव, चौराडीह, कंचनपुर, बंडी, नदना शामिल हैं। गांव के बाहर यदि शादियां होती है तो इन्हीं गांव से बरात आयेगी या जायेगी।

500 साल से करते आ रहे गांव में शादी
खन्नाथ गांव में रहने वाले 81 वर्षीय बुजुर्ग प्रेमलाल पटेल बताते हैं कि हमारे यहां लड़के लड़कियों की शादी गांव में ही करने की परंपरा 500 साल से ज्यादा पुरानी है। हमारे दादा, परदादा समेत उनके भी परिजनों की शादी गांव में होती थी। उनके बाद आने वाली पुश्तों ने इस परंपरा को आज भी जीवित रखा है।

लड़के-लड़की पसंद से चुन लेते हैं जीवन साथी
गांव के वीरेंद्र पटेल बताते हैं कि हमारे समुदाय में लड़के-लड़कियों को गांव में शादी करने की पूरी आजादी दी जाती है। वे अपनी पसंद से अपना जोड़ा चुन सकते हैं। पसंद के बाद लड़के-लड़कियां इसकी जानकारी अपने परिजनों को देते हैं, उसके बाद परिजन देखकर उनकी शादी की तैयारी शुरू कर देते हैं। गांव में हर साल चार से पांच शादी होती है, जिसमें बरात एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले में निकलती है।

बिना दहेज के करते हैं रिश्ता
खन्नाथ गांव में रहने वाला पटेल समुदाय आज भी दहेज के खिलाफ है। यहां गांव की शादी गांव में बिना दहेज के ही सदियों से होती चली आ रही हैं। 51 रुपये में तिलक की रस्म अदा कर ली जाती है। गांव के बुजुर्ग प्रीतम पटेल बताते हैं कि जब लड़का और लड़की एक दूसरे को पसंद कर लेते हैं तो दोनों पक्ष एक दूसरे को अपने-अपने घर भोज के लिए आमंत्रित करते हैं। भोज के बाद एक दूसरे को नेंग देने की भी परंपरा है। इसके बाद रिश्ते को सही, पक्का मान लिया जाता है, शादी की तैयारी शुरू कर दी जाती है।

पटेलों का मानना- पास शादी के हैं कई फायदे
सदियों पुरानी इस परंपरा को गांव में आज भी जिंदा रखने के कई मायने हैं। ग्रामीणों का मानना है कि शादी गांव में ही करने से उन्हें कई प्रकार के फायदे होते हैं। किसी भी प्रकार के त्यौहार, कार्यक्रम, संकट के समय, दुख में वो एक दूसरे के साथ होते हैं। बात खेती की हो या फिर मजदूरी की दोनों पक्ष एक दूसरे का हाथ बंटाने में परहेज नहीं करता है। यदि किसी प्रकार की कोई आर्थिक समस्या भी आती है तो एक पक्ष दूसरे का पक्ष का खुलकर सहयोग करता है।

आज तक तलाक का एक भी मामला नहीं
गांव के 90 साल के बुजुर्ग बोध प्रसाद पटेल जिन्हें गांव के लोग शादीराम घर जोड़े के नाम से भी पुकारते हैं, बताते हैं कि अकेले मैंने 50 से ज्यादा शादियां गांव की गांव में कराई हैं। मेरे घर की 18 शादियां इस मोहल्ले से उस मोहल्ले में हुई हैं। हमारे गांव में आज तक तलाक का एक भी मामला सामने नहीं आया है। यदि किसी कारणवश दंपती के रिश्तों में खटास आती भी है या कोई हादसा हो गया तो सामाजिक बैठक कर उसका फिर से नया रिश्ता बना दिया जाता है।

पास में शादी होने से कम आता है खर्चा
गांव के युवा आशीष पटेल बताते हैं कि इस रिवाज के जिंदा होने की मुख्य वजह आर्थिक गणित भी है। गांव की शादी गांव में होने से कम खर्च में शादी हो जाती है। मसलन बरात पैदल ही एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले चली जाती है, रात रुकने के लिए कोई अतिरिक्त व्यवस्था नहीं करना पड़ती है। टेंट, कैटरर भी एक कर लिया जाता है। रिश्तेदार पूरे गांव में होते हैं तो सब आसानी से एक दूसरे के घर पहुंच जाते हैं। कम खर्च में शादी होने के कारण इस परंपरा को आज भी बल मिल रहा है।

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