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डॉक्टर ने मृत व्यक्ति के अनफिट और फिट होने का दे दिया CERTIFICATE, अब बचाव की जुगत में डॉक्टर ने ली पुलिस की शरण
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भिलाई नगर। चार साल पहले मृत व्यक्ति के नाम से सुपेला के शासकीय अस्पताल के चिकित्सक ने जीवित और पूर्णत: स्वस्थ होने का प्रमाण पत्र जारी कर दिया। इस मामले की पोल खुलते ही अस्पताल में हड़कंप मच गया है। वहीं सर्टिफिकेट जारी करने वाले डॉक्टर ने सुपेला थाने में मामले की शिकायत करते हुए जांच की मांग की है।

ये है मामला

सुपेला के शासकीय अस्पताल की प्रभारी डॉ. पियम सिंह ने 2018 में मर चुके कैंप निवासी सुनील दुबे के नाम से पहले 18 जनवरी 2023 की तारीख में 1 महीने के लिए अनफिट और आगे 19 फरवरी 2023 की डेट में फिट होने का प्रमाण पत्र बना कर दे दिया। डॉ पियम का कहना है कि उन्होंने यह काम किसी स्थानीय व्यक्ति के कहने पर किया है। मुर्दे का मेडिकल सर्टिफिकेट जारी करने का यह मामला उजागर होने पर डॉ. पियम ने अपने बचाव के लिए मेडिकल बनवाने वाले रमेश दास के विरुद्ध थाने में शिकायत कर दी है।

अस्पताल का ड्राइवर लेकर आया था मेरे पास…

लाल बहादूर शास्त्री अस्पताल सुपेला की प्रभारी डॉ. पियम सिंह ने स्वीकार किया कि मुर्दे का मेडिकल मैंने ही बनाया है, बनवाने वाले ने गलत जानकारी दी जिसकी शिकायत पुलिस में की गई है। अस्पताल का ड्राइवर सुनील दुबे नाम के व्यक्ति का अनफिट सार्टिफिकेट देने लिए एक व्यक्ति को मेरे पास लाया। मैंने उसे 1 महीने के लिए अनफिट बना दिया तब जानकारी मिली कि वह व्यक्ति 4 साल पहले ही मर गया था। इस पर मेडिकल बनवाने वाले के विरुद्ध मैंने थाने में शिकायत कर दी है। पुलिस इस मामले में अपने स्तर पर जांच कर रही है।

जनहित में किया यह काम

वहीं दूसरे पक्ष ने स्वास्थ्य विभाग से शिकायत की है, जिसमें कहा गया है कि रूपये लेकर डॉक्टर मुर्दों को भी मेडिकली अनफिट व फिट बताने लगे हैं। रमेश दास ने कहा कि उसने जनहित में यह काम किया है। मामला खुलने के बाद आरोप लग रहे हैं कि बीमार को अनफिट व स्वस्थ को फिट बताने के सुपेला के शासकीय लाल बहादुर शास्त्री हास्पिटल में रूपये लेकर लंबे समय खेल चल रहा है।

गलत प्रमाण पत्र देना कदाचार…

लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. वाईके शर्मा ने कहा कि सही व्यक्ति को बीमार बताना ही कदाचार की श्रेणी में आता है। यह मामला तो मुर्दे व्यक्ति को पहले अनफिट व फिर फिट बताने का है। सुपेला के प्रभारी अधिकारी डॉक्टर पियम सिंह द्वारा ऐसी गलती करने की सूचना मिली है। मैं इसकी जांच करवाउंगा। जांच रिपोर्ट आने पर आगे विभागीय कार्रवाई के लिए संचालनालय को पत्र प्रेषित करूंगा। उधर सुपेला थाना प्रभारी दुर्गेश शर्मा ने भी बताया कि डॉ. पियम सिंह की ओर से लिखित शिकायती पत्र मिला है। मामले की जांच की जा रही है।

दिन के हिसाब से रेट है फिक्स

आरोप यह भी सामने आए हैं कि मेडिकल के लिए अस्पताल में पदस्थ अधिकतर तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के कर्मियों के रेट फिक्स हैं। इसके लिए 40 से 50 रूपये प्रतिदिन की डिमांड की जाती है। सबकी अपने-अपने डॉक्टरों से सेटिंग है। लंबे समय से यहां के कर्मचारी 3 दिन से 3 महीने तक के लिए किसी का भी अनफिट व फिट बनवा रहे हैं। इस खुलासे के बाद स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारियों को पूरे मामले की जानकारी दी गई है।

फायदे का है धंधा – पूरा तंत्र है शामिल

इस हास्पिटल में मेडिकल बनाने के काम में इतना फायदा है कि अस्पताल के ड्राइवर, वार्ड ब्वॉय के साथ ही सीनियर फार्मासिस्ट तक इसमें शामिल हैं। वार्डों में जन-जन तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने वाली मितानिनें भी यही काम कर रही हैं। अंतर यह कि सीनियर फार्मासिस्ट सिर्फ बीएसपी व निगम कर्मियों का मेडिकल बनवाता है और बाकी लोग मुंह मांगी कीमत मिलने पर किसी भी प्रकार का मेडिकल बनवाकर उपलब्ध करा देते हैं। इस पूरे मामले में सभी स्टाफ की भूमिका संदिग्ध है।

पूरे प्रदेश में चल रहा है यह खेल

इस पूरे मामले में खुलासे के बाद एक बार फिर स्वास्थ्य विभाग की किरकिरी शुरू हो गई है। दरअसल शासकीय सेवक छुट्टी के लिए अक्सर खुद को बीमार बता देते हैं। इसके लिए सरकारी डॉक्टर द्वारा जारी अनफिट और फिट होने का प्रमाण पत्र जमा करने का प्रावधान है। अधिकांश शासकीय कर्मी और अधिकारी इसी का सहारा लेते है, और कमाने के चक्कर में डॉक्टर भी बिना पहचान के ही सर्टिफिकेट बनाकर दे देते हैं। इसी लापरवाही का ही परिणाम है कि भिलाई सुपेला के शासकीय अस्पताल की प्रमुख डॉ. पियम सिंह ने 4 साल पहले मृत शख्स का पहले अनफिट और फिर फिट होने का प्रमाणपत्र बनाकर दे दिया। ऐसा एक जगह नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में हो रहा है।

प्रमाण पत्र में फोटो का हो इस्तेमाल

मेडिकल प्रमाण पत्र बनाने के इस फर्जीवाड़े को रोकने के उपाय सरकार को करने चाहिए। जानकारों का कहना है कि डॉक्टर जिनका इलाज कर रहे हैं उन्हीं का मेडिकल सर्टिफिकेट बनाकर दें और उसमें संबंधित मरीज का फोटो भी चस्पा हो। ऐसा करके इस तरह के फर्जीवाड़े और बेवजह छुट्टी लेने की प्रवृत्ति पर रोक लग सकेगी।

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