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बजट : खेती की दुर्दशा से निपटने की कमज़ोर कवायद

देविंदर शर्मा
संसद में गुरुवार को जब वित्त मंत्री खड़ी हुईं, तो उम्मीद थी कि अंतरिम बजट होने के बाद भी सरकार खेती-किसानी पर विशेष ध्यान देगी. 2019 का उदाहरण हमारे सामने था और भरोसा था कि आम चुनाव से पहले किसानों को राहत दी जाएगी.

इसका एक कारण यह भी था कि दुनिया के अमीर देशों के संगठन ‘ओईसीडी’ ने अक्तूबर, 2023 के अपने अध्ययन में बताया था कि 54 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहां के किसान वर्ष 2000 से खेती में घाटा उठा रहे हैं. इस अध्ययन में किसानों के प्रति नीतियों के कारण भारत को वियतनाम और अर्जेंटीना के समकक्ष रखा गया था. अभी अपने यहां कृषि विकास दर 1.8 फीसदी है.

सवाल है कि क्या बजट से किसानों की उम्मीदें पूरी हुईं? सरकार ने इस दिशा में कुछ कोशिशें तो कीं, पर उनमें कई किंतु-परंतु भी हैं.

खेती-किसानी के लिए इस बजट में दो चीजें काफी अहम हैं. एक, तिलहन में आत्मनिर्भरता. यह अच्छी पहल है, पर हमें 1993-94 की ‘पीली क्रांति’ के सबक भी याद रखने चाहिए. जब यह क्रांति हुई, तब 97 फीसदी तिलहन पैदावार देश में ही होती थी और सिर्फ तीन फीसदी आयात.

चूंकि इसके बाद हमने आयात शुल्क कम करने शुरू किए, जो घटकर शून्य के करीब आ गया, इसलिए खाद्य तेल का आयात बढ़ने लगा और आज हम इस मामले में दुनिया के दूसरे सबसे बड़े आयातक देश बन गए हैं. यह याद रखना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि पिछले साल सरसों की पैदावार अच्छी हुई है, फिर भी खाद्य तेलों पर आयात शुल्क घटाकर 5.5 प्रतिशत कर दिया गया.

दूसरी अच्छी चीज है, मछली पालन और दुग्ध-उत्पादन पर जोर. मछली पालन से लाभ मिलेगा, लेकिन दुग्ध-उत्पादन बढ़ाना कोई विशेष फायदेमंद नहीं है. हम अभी दुग्ध उत्पादन में सिरमौर हैं, यदि इसको बढ़ा भी दिया, तो किसानों को लाभ नहीं मिलेगा, इसलिए किसानों के फायदे के बारे में हमें सोचना चाहिए.

बजट में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास-निर्माण दूरदर्शी सोच है. अभी तक इस योजना के तहत तीन करोड़ मकान बन चुके हैं और दो करोड़ आवास बनाने का लक्ष्य रखा गया है. हालांकि, इससे भी अहम है लखपति दीदी योजना. यह ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल सकती है.

स्वयं सहायता समूह से जुड़कर अब तक एक करोड़ महिलाएं लखपति दीदी बन चुकी हैं और अब इनकी संख्या बढ़ाकर तीन करोड़ करने का लक्ष्य रखा गया है. यह सराहनीय है, क्योंकि बहुत कम लोग जानते हैं कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में, जहां स्वयं सहायता समूह की खास शुरुआत हुई है, महिलाएं मूक क्रांति कर रही हैं.

वहां महिलाओं ने इतना बड़ा आर्थिक आधार तैयार कर दिया है कि आंध्र प्रदेश प्राकृतिक खेती की ओर मुड़ने के साथ-साथ पूरी दुनिया में ‘एग्रो एग्रीकल्चर’ का बड़ा मॉडल खड़ा कर चुका है. इससे आठ लाख किसान प्राकृतिक खेती में आए हैं. दक्षिण भारत की यह संकल्पना उत्तर भारत में साकार होना सुखद होगा.

सरकार चाहती, तो अंतरिम बजट में किसान सम्मान निधि की राशि भी बढ़ा सकती थी. अभी 11.8 करोड़ किसानों को छह हजार रुपये सालाना के हिसाब से करीब 60 हजार करोड़ रुपये की राशि दी जा रही है. मगर पिछले दिनों ही कृषि मंत्रालय ने पिछले पांच साल में एक लाख करोड़ रुपये न खर्च करने के कारण यह रकम वित्त मंत्रालय को वापस लौटाई है.

यह देखते हुए कि तेलंगाना और महाराष्ट्र में राज्य सरकार अपनी ओर से 6,000 रुपये सालाना का अतिरिक्त प्रोत्साहन किसानों को देती है, यह माना जा रहा था कि संसाधन की कमी न होने के कारण केंद्र सरकार भी बजट में इसे लेकर प्रावधान करेगी, मगर ऐसा नहीं हो सका. कुल मिलाकर, अंतरिम बजट में एक दिशा तो दिखाई देती है, पर कृषि क्षेत्र अभी जिस संकट से गुजर रहा है, उससे मुक्ति के कुछ उपायों का इसमें अभाव दिखता है.

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