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सत्संग मिले न मिले, लेकिन कुसंग कभी न मिले – संत विजय कौशल

रायपुर. सत्संग मिले न मिले, लेकिन कुसंग कभी न मिले, इसका हमेशा ध्यान रखना. यदि कुसंग से बचना है तो हर समय भगवान को याद रखना. जहां छिपकर, बचकर, डरकर, यह देखकर कि कोई जान पहचान वाला देख तो नहीं रहा है, जाना पड़े वह स्थान कुसंग है. जहां पर कु -जुड़े जैसे कुसंग, कुमति तो साथ छोड़ दीजिए और जहां सु-जुड़े जैसे सुसंग,सुमति जरूर जुडि़ए. जिसके जीवन के द्वार पर कुसंग बैठा हो वह घर कोपभवन ही तो बनेगा. ये बातें दीनदयाल उपाध्याय आडिटोरियम में श्रीराम कथा के चौथे दिन संत विजय कौशल महाराज ने कही.

उन्होंने बताया कि रामराज्य की कल्पना तो करते हैं पर राम का आचरण, व्यवहार को आत्मसात नहीं करते. जो राम राजतिलक की बात आने पर अपने छोटे भाइयों का राजकाज सौंपने की बात करते हैं, पर आज भाई-भाई में छोटी सी जमीन के बंटवारे को लेकर लड़ पड़ते हैं. कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाते हैं. इससे संपत्ति तो मिल जाती है पर शांति नहीं, शांति तो मिलती है त्याग से, राम जो कर रहे हैं उस दिशा, शील स्वभाव, आचरण-व्यवहार से आगे बढ़ते नहीं हैं और कल्पना करते हैं रामराज्य की, तो कैसे स्थापित होगा?

समय आने पर शीशा दिखा देती है जनता

राजा दशरथ के मुकुट तिरक्षी होने को लेकर कथा प्रसंग में विजय कौशल ने बताया कि सत्ता हमेशा मुकुट की तरह होती है. राजनीतिज्ञों के लिए भी बड़ा संकेत है कि जनता या समाज जब शीशा दिखाये इससे पहले सत्ता छोड़ दो. शीशा देखना मतलब आत्म निरीक्षण करना. दूसरों को तो बहुत आसानी से बोल देते हैं कभी शीशे में चेहरा देखा है, लेकिन खुद का नहीं देखते इसलिए सदगुणों को विकसित करिए. ध्यान रखें जनता भोली व बावली जरूर है, लेकिन समय आने पर शीशा दिखा देती है. सत्ता का मुकुट कांटों का नहीं बल्कि सत्ता का सिंहासन कांटों का होता है, जो हमेशा कसकती रहती है कि खिसक न जाए?

अरे वाह कहो, उंह नहीं

उन्होंने बताया, हर युग के सिद्धांत अलग-अलग होते हैं. त्रेतायुग में वृद्ध होने पर पिता बेटे को कामकाज अधिकार सौंप कर वैराग्य धारण करते हुए तीर्थाटन को निकल जाते थे, लेकिन आज घर को ही वैराग्य बना दिया है. आज समय बदल गया है इसलिए वृद्धावस्था आने पर यदि जीवन आनंद से गुजारना है तो अरे वाह कहना सीख लो उंह नहीं. जो भी मिले प्रशंसा करो और अपनी भूमिका सलाहकार का बना लो तभी जीवन आनंद से गुजार पाओगे.

आशीर्वाद फलित होता है, पुरुषार्थ नहीं

विजय कौशल ने बताया, शुभ कार्य को तो कल पर टाल देते हैं, लेकिन अशुभ कार्य को तत्काल करते हैं. माफ करना हो तो कल पर टाल देते हैं, लेकिन गाली देनी हो तो तुरंत दे देते हैं इसीलिए तो हमारे जीवन में कभी शुभ फलित नहीं होता. पुरुषार्थ तो कोई भी कर लेता है, लेकिन फलित तो आशीर्वाद होता है, इसी से सुख आता है. केंवट प्रसंग की मार्मिक व्याख्या करते हुए विजय कौशल महाराज ने कहा कि जब केंवट को नदी पार कराने के बाद भगवान राम ने सीता की मुद्रिका देने को किया तो केंवट ने इंकार करते हुए कहा कि बेटी को जेवर चढ़ाये जाते हैं, उतरवाये नहीं जाते हैं. हमारे गांव, हमारे समाज की परम्परा भी नहीं है. आपके श्रीचरण के दर्शन मिल गए बस कुछ नहीं चाहिए. यही तो हमारी भारतीय संस्कृति भी है.

सोने के पहले की क्रिया का कराया अभ्यास

महाराजश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को कथा समाप्ति के बाद रात्रि में सोने से पहले की क्रिया का अभ्यास कराते हुए कहा कि दोनों हाथ ऊपर उठाकर आंख बंद करते हुए भगवान के मनोहारी छवि को नेत्रों में अंकित करें और सुमिरन करें कि हे प्रभु आपकी अपार कृपा मेरे ऊपर बरस रही है. मैं आपको सादर प्रणाम करता या करती हूं.

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