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Arvind Netam Sarva Adivasi Samaj Party:अरविंद नेताम की सर्व आदिवासी समाज पार्टी, विधानसभा चुनाव 2023 में कितनी होगी इफेक्टिव, जानिए…किस पार्टी का बिगड़ सकता है खेल, किसके वोट पर पड़ सकता है असर

Arvind Netam Sarva Adivasi Samaj Party: रायपुर। छत्‍तीसगढ़ के वरिष्‍ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम (Arvind Netam) ने फिर कांग्रेस के हाथ का साथ छोड़ दिया है। इसके साथ ही उन्‍होंने सर्व आदिवासी समाज पार्टी को विधानसभा चुनाव 2023 के मैदान में उतारने का ऐलान कर दिया है। नेताम के इस फैसले ने सत्‍तारुढ़ कांग्रेस के साथ ही प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। नेताम ने 90 में से 50 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। इसमें 29 आदिवासी आरक्षित सीट के साथ ही सामान्‍य सीट भी शामिल है। नेताम ने स्‍पष्‍ट किया है कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे बल्कि चुनाव लड़वाएंगे। राजनीतिक विश्‍लेषकों की राय में आदिवासी समाज के चुनाव लड़ने से कांग्रेस और भाजपा के चुनावी समीकरण और वोट शेयर पर असर पड़ सकता है।

समझिए नेताम का आदिवासी वोट बैंक का चुनावी गणित

छत्‍तीसगढ़ की कुल आबादी का करीब 32 प्रतिशत आदिवासी है। नेताम इसी बड़े वोट बैंक को अपनी ताकत बनाना चाह रहे हैं। नेताम ने 29 आदिवासी सीट सहित कुल 50 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार 29 आरक्षित सीटों के अलावा 7 से 8 सीट और भी जहां आदिवासी प्रभावित भूमिका में हैं। इसके साथ ही उनकी नजर एससी आरक्षित 10 सीटों पर भी है। सूत्रों के अनुसार नेताम गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोगंपा) के साथ ही कुछ और पार्टियों के साथ गठबंधन करने की योजना पर काम कर रहे हैं। बतात दें कि बिलासपुर संभाग के आदिवासी क्षेत्रों में गोगंपा की अच्‍छी पकड़ है। इस गठबंधन को ही ध्‍यान में रखते हुए उन्‍होंने फिलहाल 50 सीटों पर भी चुनाव लड़ने की घोषणा की है। ऐसे में उन्‍होंने अघोषित रुप से 40 सीट गठबंधन में शामिल होने वाले दलों के लिए पहले ही छोड़ दिया है। नेताम ने सामान्‍य सीटों के लिए उन्‍होंने सामान्‍य वर्ग के लोगों से भी अपनी पार्टी से जुड़ने की अपील की है।

भानुप्रतापुर उप चुनाव में पार्टी दिखा चुकी है ताकत Arvind Netam Sarva Adivasi Samaj Party:

बस्‍तर संभाग की भानुप्रातपुर विधानसभा सीट पर दिसंबर 2022 में उपचुनाव हुआ था। सर्व आदिवासी समाज ने भी इस चुनाव में अपना प्रत्‍याशी खड़ा किया था। समाज की तरफ से पूर्व आईपीएस अफसर अकबर राम कोर्राम को प्रत्‍याशी बनाया गया था। कोर्राम को 16 प्रतिशत वोट मिला था। 23 हजार से अधिक मत प्राप्‍त करके कोर्राम तीसरे नंबर पर थे।

सक्रिय हैं सेवानिवृत्‍त प्रशासिनक अफसर

सर्व आदिवासी समाज के जरिये पूर्व प्रशासनिक अफसर इनमें आईएएस और आईपीएस भी शामिल हैं, राजनीति में सक्रिय हैं। सर्व आदिवासी समाज में सक्रिय पूर्व प्रशासनिक अफसरों में बीएस रावटे (पूर्व प्रशासनिक) एनएस मंडावी (पूर्व आईएएस), भारत सिंह (पूर्व आईपीएस), मदन कोर्पे ( पूर्व वित्‍त सेवा), एचएल नायक ( पूर्व सेवानिवृत्त आईएएस), फूलसिंह नेताम (पूर्व प्रशासनिक) वीएस आतराम (पूर्व बैंक अधिकारी) प्रमुख नाम हैं। इनके अलावा और भी अधिकारी समाज से जुड़े हुए हैं।

समझिए छत्‍तीसगढ़ में आदिवासी सीटों का चुनावी गणित

राज्‍य की 90 में से 29 सीटे सीधे- सीधे आदिवासियों के लिए आरक्षित है। इनमें बस्‍तर संभाग की 12 में से 11 सीट और सरगुजा संभाग की 14 में से 9 सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित है। बिलासपुर संभाग में 5, रायपुर और दुर्ग संभाग में 2-2 सीट आदिवासियों के लिए सुरक्षित है।

आदिवासी सीटों पर जानिए क्‍या रहा है अब तक के चुनाव का परिणाम

आदिवासियों का कांग्रेस का परंरागत वोट बैंक माना जाता है, लेकिन 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने आदिवासी सीटों पर एक तरफ जीत दर्ज की थी। पार्टी को 29 में से 25 सीटें मिली थी। 2008 में भाजपा को 19 सीट मिली, बाकी 10 सीट कांग्रेस के खाते में गई। 2013 में भाजपा की आदिवासी क्षेत्रों में पकड़ थोड़ी और कमजोर पड़ी और पार्टी 29 में से केवल 11 सीट ही जीत पाई। 2018 के चुनाव में पार्टी का आदिवासी क्षेत्रों में लगभग सूपड़ा साफ हो गया। पार्टी बमुश्किल 2 आदिवासी सीट जीत पाई। इसमें एक बिंद्रानवागढ़ और दूसरा दंतेवाड़ा शामिल है। बाद में दंतेवाड़ा सीट पर उप चुनाव हुआ जिसमें यह सीट भी भाजपा के हाथ से निकल गई।

पहले भी अलग पार्टी बना चुके हैं नेताम Arvind Netam Sarva Adivasi Samaj Party:

नेताम इससे पहले भी अलग पार्टी बना चुके हैं। नेताम ने भाजपा के पूर्व सांसद सोहन पोटाई के साथ मिलकर जय छत्‍तीसगढ़ पार्टी का गठन किया था। इस पार्टी ने 2013 के विधानसभा चुनाव में12 सीटों पर प्रत्‍याशी उतारा था, लेकिन इनमें से कोई भी अपनी जमानत नहीं बचा पाया। 2018 के चुनाव से पहले 2017 में इस पार्टी को नेताम और पोटाई से फिर से लांच करने का प्रयास किया। हालांकि तब पूर्व मुख्‍यमंत्री अजीत जोगी ने दावा किया था कि जय छत्‍तीसगढ़ पार्टी का उनकी पार्टी जनता कांग्रेस छत्‍तीसगढ़ में विलय हो गया है। मई 2018 में नेताम ने राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस प्रवेश कर लिया था। अब फिर वे अलग होकर चुनाव मैदान में उतर रहे हैं। ऐसे में 2023 के चुनाव में नेताम और उनकी चुनाव पर कितना असर डाल पाएंगे यह तो दिसंबर 2023 में चुनाव परिणाम के बाद ही साफ हो पाएगा।

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