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Chhattisgarh ke gathan ki kahani: जानिए कैसे बना छत्तीसगढ़, पढ़िए छत्तीसगढ़ के जन्म की कहानी,जानिए यहां के खास व्यंजनों के बारे में…

Chhattisgarh ke gathan ki kahani : रायपुर। सहज-सरल रहवासियों का प्रदेश छत्तीसगढ़ करीब 23 साल की उम्र में काफी परिपक्व हो गया है। चाहे आधारभूत संरचना की बात हो या फिर आम आदमी की आय का औसत हो,शिक्षा हो,रोजगार हो या फिर स्वास्थ्य या बिजली-पानी ,हर छेत्र में छत्तीसगढ़ ने राज्य गठन के बाद उल्लेखनीय प्रगति की है। जिस गति से इस दौरान प्रदेश आगे बढ़ा,उससे इसके गठन की सार्थकता सिद्ध हुई। वे विभूतियां जिन्होंने एक अलग प्रदेश के रूप में इसके गठन के लिए संघर्ष किया ,उनके प्रयासों के प्रति आगे की पीढ़ी का ये एक प्रकार से आभार प्रदर्शन है। उन्होंने अगुवाओं के इस कथन को सत्य साबित किया कि अगर निर्णय भोपाल के बजाय छत्तीसगढ़ के भीतर लिए जाएंगे तो उनके लाभ आखिरी व्यक्ति तक पहुंचाना आसान होगा और क्षेत्र के लोगों का कल्याण होगा।

० पृथक छत्तीसगढ़ के गठन की इसलिये हुई मांग

छत्तीसगढ़ संसाधनों के लिहाज से बेहद समृद्ध रहा है। यहां की धरती में खनिजों का अपार भंडार है। लौह अयस्क,चूना पत्थर बाक्साइट, कोयला, टिन,अभ्रक,मैंगनीज,तांबा जैसे अनेक खनिज यहां बइुतायत में मिलते हैं। यहां ऊर्जा और इस्पात आधारित उद्योग केवल मध्य प्रदेश के ही नहीं बल्कि देश हित में अपनी सेवाएं दे रहे थे। इस सब के बावजूद मध्य प्रदेश का यह निचला हिस्सा हमेशा उपेक्षित रहा। इसका कारण यह माना गया कि मध्य प्रदेश के गठन के बाद छत्तीसगढ़ की सीमा के भीतर कोई महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र नहीं आया। छत्तीसगढ़ एक कोने में सिमटा रह गया। बात चाहे शासन की योजनाओं के लाभ मिलने की हो या इस क्षेत्र विशेष के उत्थान को ध्यान में रखकर कदम उठाने की,हमेशा यह क्षेत्र दोयम दर्जे का व्यवहार झेलता रहा, इसलिए असंतोष पनपना स्वाभाविक था। छत्तीसगढ़ के स्व्प्नदष्टा पं सुंदरलाल शर्मा , ठाकुर प्यालेलाल, डाॅ. खूबचंद बघेल ,फजल अली से लेकर शंकर गुहा नियोगी और पवन दीवान तक अनेक विभूतियों के अनथक प्रयासों की बदौलत अंतत 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ का गठन हुआ।

० छत्तीसगढ के जिले 16 से हुए 33, लोगों के नजदीक पहुंचा प्रशासन

सालों के प्रयास के बाद आखिर छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ। मध्यप्रदेश से अलग कर यह भारत का 26वां राज्य बना। आपको बता दें कि 36 गढ़ों ( पूर्व में रही रियासतों) के कारण इसे छत्तीसगढ़ के नाम से जाना गया। पहली बार 1795 में अंग्रेजों के एक आधिकारिक दस्तावेज में छत्तीसगढ़ शब्द का इस्तेमाल किया गया था।

नवगठित छत्तीसगढ़ का क्षेत्रफल 1 लाख 35 हजार 192 वर्ग किमी है। 2011 की जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ की कुल आबादी 2, 55, 45,198 है। जिसमे पुरुषों की जनसंख्या 128, 30,336 और महिलाओं की जनसंख्या 1, 27, 14,862 है। जनगणना 2011 के अनुसार छत्तीसगढ़ की आबादी में अनुसूचित जनजाति के 78,22,902 करीब 30.60 प्रतिशत और अनुसूचित जाति के 32,74,269 करीब 12.82 प्रतिशत लोग शामिल हैं। प्रदेश में छत्तीसगढ़ी भाषा मुख्य रूप से बोली जाती है जबकि विभिन्न आदिम जाति समूह अपनी परंपरागत भाषा जैसे हल्बी, गोंडी आदि का प्रयोग करते हैं।

राज्य गठन के समय छत्तीसगढ़ को 16 जिले, 96 तहसील और 146 विकासखंडों में बांटा गया। नवगठित प्रदेश की राजधानी रायपुर को बनाया गया तथा बिलासपुर में उच्च न्यायालय की स्थापना की गई।

तब से लेकर आज तक की स्थिति में प्रशासन को जनता के और करीब ले जाने के मकसद से समय समय पर अनेक नए जिले बनाए गए। आज छत्तीसगढ़ में कुल 33 जिले हैं। जिनके नाम इस प्रकार हैं।

ये है छत्तीसगढ़ के 33 जिले…

1. कवर्धा

2. कांकेर

3. कोरबा

4. कोरिया

5. जशपुर

6. जांजगीर-चाम्पा

7. दन्तेवाड़ा

8. दुर्ग

9. धमतरी

10. बिलासपुर

11. बस्तर

12. महासमुन्द

13. रायगढ़

14. रायपुर

15. सरगुजा

16. नारायणपुर

17. बीजापुर

18. बेमेतरा

19. बालोद

20. बलौदा बाज़ार

21. राजनांदगांव

22. गरियाबंद

23. सूरजपुर

24. कोंडागांव

25. बलरामपुर

26. मुंगेली

27. सुकमा

28. गौरेला-पेंड्रा-मारवाही

29 . मनेंद्रगढ़

30. सारंगढ़-बिलाईगढ़

31. मोहला-मानपुर

32 सक्ती

33. खैरागढ़

० छत्तीसगढ़ महकता है इन खास छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की खुशबू से-

छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। इसलिए यहां के व्यंजनों में चावल का प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है। छत्तीसगढ़ के व्यंजन सरल रीति से बनाए जाते हैं और बेहद स्वादिष्ट होते हैं। कुछ खास व्यंजन ये हैं –

करी – बेसन का मोटा सेव है। बेसन में नमक, मोयन डालकर गूंधा जाता है जिससे नमकीन करी बनती है। वहीं बिना नमक की करी से गुड़ वाला मीठा लड्डू बनता है। जो बहुत पसंद किया जाता है।

चीला- छत्तीसगढ़ में चावल के आटे का इस्तेमाल चीला बनाने के लिए किया जाता है। इसे क्रंची बनाने और स्वाद बढ़ाने के लिए थोड़ा बेसन या सूजी मिलाया जाता है। खड़ा धनिया, तिली, खड़ी मिर्च जैसे मसालों की सौंधी खुशबू इसके स्वाद में जबरदस्त इज़ाफा करती है।

ठेठरी – पोला, हरेली जैसे लोकल त्योहारों पर यहां ठेठरी ज़रूर बनाई जाती है। इसे बनाने के लिए बेसन और चावल का आटा मिक्स कर अजवाइन, जीरा, तिल, लाल मिर्च पाउडर, नमक, हल्दी मिलाते है। मोयन देकर सख्त आटा गूंधते है और लोई को रस्सी की तरह लंबा कर मनचाहे आकार में ढाल तेल में तलते हैं।

चौसेला – इसे बनाने के लिए भी चावल के आटे का उपयोग किया जाता है। चौसेला मूलतः चावल के आटे की पूड़ी है।

फरा – यह भी चावल के आटे से बनता है। इसमें चावल के आटे को गूंध कर उसमें मसालेदार मूंग, चना या उड़द दाल की स्टफिंग की जाती है और फिर इसे भाप में पकाया जाता है। वहीं मीठा फरा बनाने के लिए गुड़ का घोल इस्तेमाल किया जाता है।

पपची – पपची एक मीठा व्यंजन है। इसे गेंहूं और चावल का आटा मिलाकर बनाया जाता है। मोयन डालकर, नारियल बुरादा मिलाकर आटा गूंधा जाता है। फिर मठरी शेप की पपची तल कर चाशनी में डिप करके निकाली जाती है। शादी के अवसर पर पपची ज़रूर बनाई जाती है। मीठी पपची मंद आंच में सेके जाने से कुरमुरी और स्वादिष्ट लगती है।

अईरसा – 24 घंटे चावल को गलाकर, सुखाने के बाद पीसकर फिर गुड़ के घोल में डालकर अईरसा का मिश्रण बनाया जाता है। इसमें तिल भी डालते हैं। आखिर में खसखस में लपेट कर इसे तला जाता है।

गुलगुल भजिया- गुलगुल भजिया एक मीठा व्यंजन है। और छत्तीसगढ़ की फेमस डिश भी। गुलगुल भजिया को गेंहू आंटे से बनाया जाता है।इसे शक्कर या गुड़ के साथ बनाया जाता है।

चौसेला- हरेली, पोरा, छेरछेरा त्यौहारों में चांवल के आटे से तलकर तैयार किया जाने वाले इस व्यंजन का जायका गु

तसमई – छत्तीसगढ़ी तसमई खीर जैसा व्यंजन है। दूध, चावल और शक्कर या गुड़ के साथ इसे बनाया जाता है।

देहरोरी – भिगोए हुए चावल को दरदरी सूजी जैसे पीसकर फिर दही के साथ घोलकर देहरोरी बनाई जाती है। फिर इसे चाशनी में डाला जाता है। देहरौरी को रसगुल्ले का छत्तीसगढ़ी रूप कहा जाता है।

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