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Chhattisgarh Power Company: ओपीएस की मांग को लेकर बिजली कंपनी में हड़ताल: अनुपस्थित रहने वालों को ब्रेक-इन-सर्विस का नोटिस

Chhattisgarh Power Company रायपुर। पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) लागू करने की मांग को लेकर सरकारी बिजली कंपनी के कर्मचारियों-अधिकारियों ने आज एक दिन के हड़ताल की घोषणा की थी। हड़ताल का आह्वान छत्तीसगढ़ पॉवर कंपनी अधिकारी कर्मचारी ओपीएस बहाली संयुक्त मोर्चा ने किया था। इस बीच श्रम न्‍यायालय ने हड़ताल को अवैध करार दे दिया। इसके बावजूद कई कर्मचारी हड़ताल पर रहे। कंपनी प्रबंधन ने इसे गंभीरता से लेते हुए हड़तालियों को नोटिस जारी कर दिया है।

कंपनी प्रबंधन ने दावा किया है कि हड़ताल का जनरेशन कंपनी के संयंत्रों में कोई असर नहीं रहा। वहां केवल 3%(81/2852) अधिकारी कर्मचारी हड़ताल पर रहे। ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी में आंशिक असर रहा। ट्रांसमिशन में 26% (417/1587) और डिस्ट्रीब्यूशन में 35 % (3250/9122) अधिकारी कर्मचारी हड़ताल पर रहे। श्रम न्यायलय द्वारा विभिन्न कर्मचारी संघों की हड़ताल को अवैध घोषित किया गया, जिसकी सूचना सभी हड़ताली संघों को होने के बावजूद भी सामूहिक अवकाश लेने वाले कर्मचारी-अधिकारी हड़ताल पर गए जिससे पावर कंपनी के कामकाज पर आंशिक असर पड़ा और आम उपभोक्ता बेवजह परेशान हुए इसे प्रबंधन ने गंभीरता से लिया है। इसलिए सभी हड़ताली विद्युत कर्मियों को नोटिस दी जा रही है एवं उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है।

श्रम न्यायालय के आदेश से सभी श्रमिक संघों/संगठनों को समय पर अवगत करा दिया गया था। इसके बावजूद, श्रमिक संघों द्वारा 18 अगस्त को हड़ताल की गई। हड़ताल में कुल तीनों पावर कंपनियों में 13,561 विद्युत कर्मी कार्यरत हैं जिनमें से कुल 3,748 कर्मचारी/अधिकारी अर्थात् लगभग 28 प्रतिशत अनुपस्थित रहे। अनधिकृत अनुपस्थित कर्मचारियों/अधिकारियों के हड़ताल के दिन के वेतन की कटौती एवं हड़ताल अवधि को ’’ब्रेक-इन-सर्विस’’ किये जाने के संबंध में कार्यवाही की जा सकती है।

इस संबंध में पॉवर कंपनी द्वारा परिपत्र क्र0 186 दिनांक 11.08.2023 के माध्यम से हड़ताल में बिना पूर्व स्वीकृति के कर्मचारियों द्वारा कार्यालयीन अवधि में सामूहिक अवकाश पर जाने की परिस्थिति में अथवा सामूहिक अवकाश/धरना/हड़ताल में भाग लेने की परिस्थिति में ऐसी अनधिकृत अनुपस्थिति के दिवसों का अवकाश स्वीकृत नहीं किये जाने व ऐसे अवधि का वेतन देय नहीं होने और इस अवधि को ’’ब्रेक-इन-सर्विस’’ माने जाने के संबंध में निर्देश जारी किये गये थे।

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